Book Title: Bhaktamara stotra
Author(s): Mantungsuri, Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 88
________________ श्री ऋषभ जिनेश्वर आधा नर था, आधा पशु था , एक तरह से उस युग का जन । तन का बली दैत्य - सा ऊंची, किन्तु नहीं था कुछ विकसित मन ॥१॥ नभ - तल से तू उतरा, आया-- धरती पर संदेश लिये नव । तन के मानव को तूने ही , किया उच्चतर मन का मानव ॥२॥ मात्र भोग में लिप्त हाथ थे, कर्म - योग में जुझ गये अब । उतरा स्वर्ग धरा पर सुन्दर , लगे विहँसने नर - नारी सब ॥३॥ धों को आँखें दी तू ने, नई सृष्टि का हुआ समुद्भव । भौतिक - आध्यात्मिक वैभव पा , मानव हुआ यथावत मानव ॥४॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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