Book Title: Bhaktamara stotra
Author(s): Mantungsuri, Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 87
________________ भक्तामर-स्तोत्र भानन्दित - सुर - नर - पुन्नांगं, नागर - मानस - हंसं रे। हंसगति पञ्चम - गतिवासं, वासव - विहिताशंसं रे । शंसन्तं नयवचनमनवमं, नव - मंगल - दातारं रे। तारस्वरमघघन - पवमानं , मान - सुभट : जेतारं रे ।। इत्थं स्तुतः प्रथम - तीर्थपतिः प्रमोदात् , श्रीमद् - यशोविजय . वाचकपुंगवेन । श्री पुण्डरीक - गिरिराज - विराजमानो , मानोन्मुखानि वितनोतु सतां सुखानि ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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