Book Title: Bhaktamara stotra
Author(s): Mantungsuri, Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 89
________________ भक्तामर स्तोत्र आदि देव, जिन, मुनि, राजा तू , तेरा यश सुर . नर - मुनि गाते । लाखों - लाखों वर्ष हुए, हम-~ __ अब भी तव पथ चलते जाते ॥५॥ महक रहे तव स्मृति - सौरभ से , देवाऽसुर मानव के अन्तर । गूंज रहा जय - घोष चतुर्दिक , ऋषभ-जिनेश्वर, ऋषभ जिनेश्वर ॥६॥ ज्योति-गुरु ऋषभ जिनवर जगहितकर, आदियुग के ज्योति-गुरु हैं। देह की, चैतन्य की सब , कामना कल्प - तरु हैं ।। तम मिटा, नव ज्योति फैली , प्रभु की कृपा से जग जगा । नरक बनते अवनि-तल' पर , सुख - स्वर्ग का मेला लगा ॥ -उपाध्याय अमरमुनि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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