Book Title: Bhaktamara stotra
Author(s): Mantungsuri, Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

View full book text
Previous | Next

Page 22
________________ भक्तामर स्तोत्र १३ अन्वयार्थ - ( अस्त समस्तदोषम् ) सम्पूर्ण दोषों से रहित ( तव स्तवनम् आस्ताम् ) आपका स्तवन तो दूर रहा, किन्तु ( त्वत् संकथा अपि ) आपकी पवित्र कथा भी ( जगताम् ) जगत् के जीवों के (दुरितानि) पापों को ( हन्ति ) नष्ट कर देती है । ( सहस्रकिरण: ) सूर्य (दूरे) दूर रहता है, पर उसकी ( प्रभाव ) प्रभा ही (पद्माकरेषु) सशेवरों में (जलजानि) कमलों को ( विकासभाञ्जि ) विकसित ( कुरुते ) कर देती है ॥ ६ ॥ भावार्थ:-- हे जिनेन्द्र ! समस्त दोषों को नष्ट करने चाला आपका पवित्र स्तोत्र तो विलक्षण चमत्कार रखता ही है, परन्तु वह तो दूर रहा, यहाँ तो श्रद्धा से उच्चारण किया जाने वाला आपका छोटे-से-छोटा नाम भी त्रिभुवन के पापों को नष्ट कर देता है । अरुणोदय के समय हजार किरणों वाला सूर्य तो दूर ही रहता है, परन्तु उसकी भू-मण्डल पर सर्वप्रथम अवतरित होने वाली प्रभा ही सरोवर के रात भर के मुरझाए हुए कमलों को विकसित कर देती है । टिप्पणी जब कि सूर्य की प्रातः कालीन अरुणप्रभा से ही कमल खिल जाते हैं, तो सूर्य के साक्षात् उदय होने पर क्यों न खिलेंगे ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90