Book Title: Bhaktamara stotra
Author(s): Mantungsuri, Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 71
________________ ६२ भक्तामर स्तोत्र हुई - रची हुई ( रुचिरवर्णविचितपुष्पाम् ) मनोहर अक्षर रूपी विचित्र फूल वाली, माला पक्ष में सुन्दर रंगों वाले कई तरह के फूलों सहित (तव) आपकी ( स्तोत्रस्रजम् ) स्तुति रूपी माला को (अजस्रम् ) निरन्तर ( कण्ठगताम् धत्ते ) कण्ठस्थ कर लेता है - माला पक्ष में- गले में धारण कर लेता है ( तम् ) उस ( मानतु गम् ) सम्मान से उन्नत पुरुष अथवा स्तोत्र - रचयिता आचार्य मानतुंग को ( लक्ष्मी: ) स्वर्ग - मोक्ष आदि रूपी लक्ष्मी - विभूति (अवशा) विवश होकर अधीनता को ( समुपैति ) प्राप्त हो जाती है । भावार्थ- हे जिनेन्द्र ! मैंने भक्ति-भाव से यह आपकी स्तोत्र रूप माला तैयार की है, जो मनोहर वर्ण रूपी नाना प्रकार के फूलों से युक्त है, जो आपके उत्तम गुणों से गूंथी गई है । अस्तु, जो भक्त जन इसे अपने कंठ में सतत धारण करता है, वह सम्मान के ऊँचे से ऊँचे पद पर पहुंचता है और उसके चरणों में लक्ष्मी स्वयं विवश हो कर दासी के रूप में उपस्थित हो जाती है । W Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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