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हिन्दी भक्तामर स्तोत्र
दोहा आदि पुरुष आदीश जिन, आदि सुविधि करतार । धरमधुरंधर परम गुरु, नमो आदि अवतार ॥
चौपाई
सुरनतमुकूटरतन छवि करें, अन्तर पापतिमिर सब हर। जिनपद वंदों मनवचकाय, भवजलपतित-उधारन सहाय ।।
: २ : श्रुतिपारग इन्द्रादिक देव, जाकी थुति कीनी कर सेव । शब्द मनोहर अरथ विशाल, तिस प्रभुकी वरनों गुनमाल ।
विबुधवंद्यपद मैं मतिहीन, होय निलज थुति मनसा-कीन । जल प्रतिविव बुद्ध को गहै, शशिमंडल बालक ही चहै ।
गुणसमुद्र तुम गुन अविकार, कहत न सुरगुरु पावै पार । प्रलयपवन उद्धतजलजन्तु, जलधि तिरै को भुज बलवंतु।।
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