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भवतामर स्तोत्र
वलगत्तुरंग - गज-गर्जित-भोमनाद__ माजौ वलं बलवतामपि भूपतीनाम् । उद्यदिवाकर - मयूखशिखापविद्ध,
त्वत्कीर्तनात् तम इवाशु भिदामुपैति ।४२॥ अन्वयार्थ - ( त्वत्कीर्तनात् ) आपके गुणकीर्तन से ( आजौ ) युद्ध क्षेत्र में ( वल्गत् - तुरंगगज - गर्जित भीमनादम् ) उछलते हुए घोड़ों और हाथियों की गर्जना से जिसमें भयंकर आवाज हो रही है, ऐसी (बलवतां भूपतीनां अपि) शक्तिशाली तेजस्वी राजाओं की भी ( बलम ) सेना (उद्यद्-दिवाकर-मयूख-शिखापविद्वम्) ऊगते हुए सूर्य की किरणों के अग्रभाग से छिन्न-भिन्न हुए (तमः इव) अन्धेरे की तरह (आशु) शीघ्र ही ( भिदाम् उपैति ) विनष्ट हो जाती है, हार जाती है ।।४२।।
मावार्थ-- रणक्षेत्र में बड़े भारी बलवान् शत्रु राजाओं की वह सेना, जिसमें घोड़े हिनहिनाते हों, हाथी गरजते हों, बहुत भीषण कोलाहल मच रहा हो, आपके नाम से सहसा उसी प्रकार परास्त हो जाती है, जिस प्रकार प्रभातकालीन उदय होते हुए सूर्य की किरणों से रात्रि का सघन अन्धकार छिन्न - भिन्न हो जाता है।
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