Book Title: Bhaktamara stotra
Author(s): Mantungsuri, Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 43
________________ भक्तामर - स्तोत्र Ram पुरुष आपको अव्यय-अजर-अमर, विभु-अनन्त ऐश्वर्य शाली, अचिन्त्य-मन की चिन्तन-धारा के लिए भी अगम्य, असंख्य--असंख्य गुणों से युक्त, आद्य-धर्म की स्थापना करने वाले, सर्वप्रथम तीर्थंकर, ब्रह्म-आध्या। त्मिक आनन्द में किसी भी प्रकार की हानि से रहित ईश्वर-तीन लोक के स्वामी, अनन्त-अनन्त ज्ञान के धर्ता, अनंगकेतु --काम-विकार को नाश करने के लिए संहारक केतु ग्रह के समान, योगीश्वर-मन, वचन, शरीर के योग पर विजय पाने वाले योगियों के आराध्या देव, विदितयोग-ज्ञान, दर्शन, चारित्र की योग-साधना के पूर्ण ज्ञाता, अनेक-भक्तों के हृदय में नानारूप से विराजमान, एक-अलौकिक-अद्वितीय, ज्ञान-स्वरूप-- शुद्ध चैतन्यरूप, अमल-क्रोध आदि कषाय के मल से सर्वथा रहित प्रतिपादित करते हैं। टिप्पणी ज्योतिष-शास्त्र में केतुग्रह के सम्बन्ध में बताया गया है। कि जब वह आकाश-मण्डल में आता है, तो संसार में प्रलया का दृश्य खड़ा कर देता है । केतु वह तारा है, जिसे पुछड़िया तारा भी कहते हैं। भगवान् भी विकारों को नष्ट करने के लिए धूमकेतु ग्रह के समान हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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