Book Title: Bhaktamara stotra
Author(s): Mantungsuri, Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 41
________________ ३२ भक्तामर स्तोत्र द्वेष के मल से रहित हो अज्ञान अन्धकार से सर्वथा दूर हो । अन्तःकरण की शुद्धि के द्वारा आपका दर्शन पाकर ही साधक मृत्यु पर विजय प्राप्त करते हैं, सिद्ध होते हैं । प्रभो ! आपकी भक्ति के सिवा शिव अर्थात् मुक्तिपद का दूसरा कोई भी मंगल-मार्ग नहीं है। टिप्पणी भक्तामर स्तोत्र की प्राय: जितनी भी पुस्तकें मेरे देखने में आई हैं, सब में 'तमसः पुरस्तात्' पाठ मिलता है । कुछ विद्वान् टीकाकारों ने इसी पाठ के आधार पर अर्थ भी यह कर दिया है कि- 'अन्धकार के आगे आप सूर्य हैं ।' मैं बहुत दिनों से सोच रहा था, कि यह पाठ कुछ उचित प्रतीत नहीं होता । 'अन्धकार के आगे ' इसका क्या भाव हुआ ? कुछ भी नहीं । सौभाग्य से जब मैं यजुर्वेद का स्वाध्याय करने लगा, तो वहाँ प्रस्तुत श्लोक से हूबहू मिलता हुआ मंत्र मिला और सब संशय दूर हो गया। जिस पाठ की मैंने कल्पना की थी, वही पाठ वहाँ मिला । वह पाठ था- -'तमसः परस्तात् । ' यजुर्वेद का मंत्र इस प्रकार है । देखिए, कितना अधिक साम्य है : - वेदाहमेनं पुरुषं महान्तम्आदित्यवर्ण तमसः परस्तात् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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