Book Title: Bhaktamara stotra
Author(s): Mantungsuri, Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 40
________________ भक्तामर - स्तोत्र ३१ टिप्पणी शतश: शब्द का अर्थ 'हजारों' किया है। क्योंकि 'शत' शब्द अनेक ग्रन्थों में बहुत्व का वाचक है और वह हजारों की संख्या सूचित करता है। त्वामामनन्ति मुनयः परमं पुमांस मादित्यवर्णममलं तमसः परस्तात् । त्वामेव सम्यगुपलभ्य जयन्ति मृत्यु, मान्यः शिवः शिवपदस्य मुनीन्द्र ! फ्थाः ।२३। अन्वयार्थ : (मुनीन्द्र) हे मुनियों के नाथ ! (मुनयः) मननशील मुनि (त्वाम् ) आपको (आदित्यवर्णम्) सूर्य की तरह तेजस्वी, (अमलम्) निर्मल और (तमसः परस्तात्) मोह-अन्धकार से परे रहने वाले, ( परमं पुमांसम् ) परम पुरुष (आमनन्ति) मानते हैं। वे (त्वाम् एव) आपको ही (सम्यक् ) अच्छी तरह से (उपलभ्य) प्राप्त कर (मृत्युम्) मृत्यु को (जयन्ति) जीतते हैं। (शिवपदस्य) मोक्ष पद का, इसके सिवाय (अन्यः) दूसरा (शिवः) कल्याणकर (पन्थाः) मार्ग (न अस्ति) नहीं है ॥२३॥ भावार्थ : हे मुनीन्द्र ! मुनि जन आपको परम पुरुष मानते हैं। आप सूर्य के समान तेजस्वी हो, अमल-राग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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