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भक्तामर स्तोत्र
कोई देव, इस जन्म में तो क्या, जन्म-जन्मान्तर में भी मन को आकृष्ट नहीं कर सकता।
टिप्पणी राग-द्वषयुक्त हरि-हर आदि दूसरे देवताओं के दर्शन की अपेक्षा भगवान के दर्शन को हीन बताना, व्याजस्तुति अलंकार है । व्याजस्तुति अलंकार का अर्थ है, कि ऊपर से शब्दों में तो निन्दा दिखाई दे, परन्तु अन्दर में स्तुति ध्वनित हो । प्रस्तुत श्लोक में भी निन्दा को ओट में स्तुति बड़ी सुन्दर मालूम होती है-जैसे हलके बादलों की ओट में चन्द्र । ___आचार्य का अन्तरंग अभिप्राय यह है, कि दूसरे देवताओं के दर्शन करते हैं, तो वे राग-द्वष-युक्त मालूम होते हैं, किसी के अन्दर भी वास्तविक देवत्व के दर्शन नहीं होते हैं। अतः सच्चे देव की शोध चालू रहती है और अन्त में आप - जैसे वीतराग देव के दर्शन पाकर ही सन्तोष होता है। और, जब आपके एक वार दर्शन हो गए, तो फिर स्वप्न में भी मन अन्य देवताओं की ओर नहीं जाता। असली वस्तु मिलने पर फिर नकली कौन पसन्द करता है ? अतः भगवान के दर्शन कर लेने के बाद और कोई देवता फिर पसन्द ही नहीं आता। स्त्रीणां शतानि शतशो जनयन्ति पुत्रान्
नान्या सुतं त्वदुपमं जननी प्रसूता ।
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