Book Title: Bhaktamara stotra
Author(s): Mantungsuri, Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

View full book text
Previous | Next

Page 46
________________ भक्तामर स्तोत्र आपको नमस्कार हो। (त्रिजगतः परमेश्वराय ) तीनों जगत् के परमेश्वर रूप (तुभ्यं नमः) आपको नमस्कार हो और (जिन !) हे जिनेश्वर ! ( भवोद्रधि - शोषणाय ) संसार - समुद्र को सुखाने वाले (तुभ्यं नमः ) आपको 'नमस्कार हो ॥२६॥ भावार्थ-हे नाथ ! त्रिभुवन के दुःख हरने वाले आप को नमस्कार है। भूमण्डल के एकमात्र निर्मल अलंकार, आपको नमस्कार है। तीन जगत् के परमेश्वर, आपको नमस्कार है । हे राग-द्वोष के विजेता ! आप संसार रूपी महासागर के शोषण करने वाले हैं, अतः आपको कोटि-कोटिवार नमस्कार है। को विस्मयोऽत्र यदि नाम गणरशेषेस-- त्वं संश्रितो निरवकाशतया ममीश ! दोषरुपात्त • विविधाश्रय - जातगई, स्वप्नान्तरेऽपि न कदाचिदपीक्षितोऽसि ॥२७॥ अन्वयार्थ-(मुनीश !) हे मुनियों के स्वामी ! (यदि नाम) यदि ( निरवकाशतया) अन्य स्थल में अवकाश न मिलने के कारण (अशेषैः गुणैः) समस्त गुण (त्वम्) आप के (संश्रितः) आश्रित हो गए हैं, इसलिए (उपात्त - विविधाश्रय - जातगः ) अनेक जगह आश्रय प्रात होने के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90