Book Title: Bhaktamara stotra
Author(s): Mantungsuri, Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 33
________________ २४ भक्तामर स्तोत्र भावार्थ- हे मुनीन्द्र ! आप सूर्य से भी अधिक विलक्षण महिमाशाली हैं। सूर्य प्रतिदिन उदय होने के वाद रात्रि में अस्त होता है, परन्तु आपका केवलज्ञानसूर्य तो सदा प्रकाशमान रहता है, कभी अस्त ही नहीं होता । सूर्य को राहु ग्रस लेता है, परन्तु आपको राहुरूप कोई भी भौतिक आकर्षण ग्रस्त नहीं कर सकता। सूर्य परिमित क्षेत्र को ही प्रकाशित करता है, वह भी क्रम से, परन्तु आप तो तत्काल एक हो समय में सम्पूर्ण तीनों जगन को केवलज्ञान के प्रकाश से प्रकाशित करते हैं। सूर्य के तेज को साधारण मेघ भी ढक देता है, परन्तु आपके महाप्रभाव को संसार की कोई भी शक्ति अवरुद्ध नहीं कर सकती। टिप्पणी आचार्य ने भगवान् को सूर्य से भी अधिक महान् प्रभावशाली बताया है। आचार्यश्री अखिल संसार के कविवरों के समक्ष उद्घोषणा करते हैं, कि-"भगवान् को सूर्य की उपमा देना किसी तरह भी उचित नहीं है। कहाँ अनन्त चैतन्य आलोक के स्वामी भगवान् और कहाँ सीमाबद्ध जड़ सूर्य ?" नित्योदयं दलितमोह - महान्धकारं, गम्यं न राहु-वदनस्य न वारिदानाम् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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