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भक्तामर-स्तोत्र
कैसे विनाश को प्राप्त हो जाता है ? जैसे कि समग्र विश्व पर छाया हुआ, भौंरे के समान अत्यन्त काला अमावस्या की रात्रि का सघन अन्धकार, प्रातः कालीन सूर्य की उज्ज्वल किरणों के उदय होने से विनाश को प्राप्त हो जाता है ।
टिप्पणी प्रभो ! आपके गुण-कीर्तन से, आपकी स्तुति से मेरे अन्ततम के समग्र पाप उसी प्रकार समाप्त हों, जिस प्रकार सूर्य के प्रकाश से रात्रि का सघन अन्धकार नष्ट ही जाता है । मत्वेति नाथ ! तव संस्तवनं मयेद
__ मारभ्यते तनुधियापि तव प्रभावात् । चेतो हरिष्यति सतां नलिनीदलेषु,
मुक्ताफलद्युतिमुपैति ननूदबिन्दुः ॥८॥ अन्वयार्थ-(नाथ) ! हे स्वामिन् (इति मत्वा) ऐसा मानकर ही (मया तनुधिया अपि) मुझ मन्द - बुद्धि के द्वारा भी (तव) आपका (इदम् ) यह (संस्तवनम्) स्तवन (आरभ्यते) प्रारम्भ किया जाता है कि (तव प्रभावात्) आपके प्रभाव से वह (सताम्) सज्जनों के (चेतः) चित्त को उसी तरह (हरिष्यति) हरण करेगा (मनु) निश्चय ही जैसे (उद-बिन्दुः) जल-बिन्दु (नलिनीदलेषु) कमलिनी
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