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भक्तामर स्तोत्र
असमर्थ हूँ, तथापि आपकी भक्ति से प्रेरित होकर स्तुति करने के लिए प्रवृत्त हो रहा हूँ, असम्भव को भी संभव वना रहा हूँ।
संसार जानता है, कि बेचारा हिरन कितना दुर्बल प्राणी है, परन्तु क्या वही हिरन अपने शिशु की रक्षा के लिए, प्रेम के वश अपने बल का कुछ भी विचार न कर, क्रुद्ध सिंह के समक्ष अड़ नहीं जाता है ? अवश्य अड़ जाता है।
टिप्पणी प्रेम ऐसी ही चीज है। प्रेम में शक्ति और अशक्ति का भान ही नहीं रहता। सच्चा प्रेमो असम्भव-से-असम्भवतर कार्य को भी करने के लिए साहस कर डालता है । यह साहस संसार में अमर-कीर्ति प्राप्त करता है। आचार्य कहते हैं कि 'भगवत्प्रेम की धुन में किया जानेवाला मुझ अशक्त का यह स्तुति करने का दुःसाहस भी भक्तों के समाज में चिर-प्रशंसनीय रहेगा।' प्रेम के संबंध में अपने बालक की रक्षा के लिए सिंह से लड़ने वाले हिरन का उदाहरण अतीव उत्कृष्ट है। अल्पश्रुतं श्रुतवतां परिहास - धाम,
त्वद्-भक्तिरेव मुखरीकुरुते बलान्माम् । यत्कोकिलः किल मधौ मधुरं विरौति,
तच्चाम्रचार-कलिका - निकरैकहेतु ॥६॥
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