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प्रमेयचन्द्रिकाटीका श.७ उ.१० म.६ अकर्मजीवगतिस्वरूपनिरूपणम् २८७ खलु निःसङ्गतया, निरङ्गणतया, गतिपरिणामेन, अकर्मणः कर्मरहितस्य जीवस्य गतिः प्रज्ञाप्यते ? भगवान् तत्र दृष्टान्तपूर्वकं कारणं प्रतिपादयति-'से जहा नामए केइ पुरिसे सुक्कं तुंबं निच्छिड्डे निरुवहयं' हे गौतम ! तद्यथानाम कश्चित् पुरुषः शुष्कं तुम्बं निश्छिद्र छिद्ररहितम् , निरुपहतम् अभग्नम् , एतादृशं तुभ्यम्' 'आणुपुबीए परिकम्मेमाणे२ दम्भेहि य, कुसेहि य वेढेड' आनुपूर्व्या अनुक्रमेण परिक्रमेण परिक्रममाणः२ पुन' पुनः परिष्कुर्वन् , दर्भेश्व समूलैस्तृणविशेषैः, कुशेश्च निर्मूलैस्तृणविशेषैः 'वेढेइ'-वेष्टयति, वेढेत्ता अडेहिं मट्टिया लेवेहिं लिंपइ' वेष्टयित्वा अष्टभिः मृत्तिकालेपैः तं तुम्बं लिम्पति विलेपयति, 'लिंपित्ता उण्हे दलयइ भूई भूई' लिप्त्वा-विलिप्य उष्णे सूर्यतापे ददाति स्थापयति, है, तथा सकावस्थामें जो उसका गतिपरिणाम वाला स्वभाव था उसी स्वभाववाला यह अकर्मावस्थामें भी रहता है इन्हीं सब कारणों को लेकर कर्मरहित जीवकी भी गति होनी कही गई हैं। इसी बातको प्रभु दृष्टान्त देकर समझाते हैं 'से जहानामए केइ परिसे सुकं तुंव निच्छिड्डं निरुवयं' जैसे कोई पुरुष एक तुंबडीको कि जो बिलकुल सूकी हो, छिद्रका जिसमें नामतक भी न हो फूटो भी न हो, अर्थात् जिसमें एकभी दरार न पडी हो भीतरसे बिलकुल अच्छी तरहसे साफ करले फिर उसे वह दर्भ-डाभसे एव कांशसे खूब चारों
और से वेष्टित कर देवे 'वेढेत्ता अट्ठहिं मट्टियालेवेहिं लिंपई' वेष्टित करके फिर उसके ऊपर आठ बार मिट्टीका लेप करे लिंपित्ता उण्हे. दलयह' प्रत्येक लेपमें वह उसे सूर्य की धूपमें रखकर सुकाता जावे इस तरह 'भूइं भूइं सुकं समाणं' बार२ सुकाई हुई उस तूबडीको પરિણામવાળે સ્વભાવ હતું, એ જ સ્વભાવવાળે તે અકર્ભાવસ્થામાં પણ રહે છે. આ બધા કારણેને લીધે કર્મરહિત જીવની પણ ગતિ હોય છે, એવું કહ્યું છેહવે મહાવીર प्रभु मे दृष्टान्त २१ मा पात समतवे छ- 'से जहा नामए के पुरिसे मुक्क तवं निच्छिडु निरुवयं' रेभ मे पुरुष मे सूत्री, रमा ४ પણ જગ્યાએ છિદ્ર ન હોય એવી, ફૂટ્યા વિનાની (જેમાં એક પણ ચિરાડ પડી ન હોય -એવી) તૂમડીને બરાબર સાફ કરી નાખે છે અને પછી તે પુરુષ તે તુંબડીના ઉપર यारे तरथी हमने श (मे २र्नु घास) सपेरा छे त्या२ मा 'वेदेता अहि मट्रियालेवेहि लिंपड' त तन। ५२ भाटीना २मा ४२ छे लिपित्ता उण्हे दलयई' २४ वमेत ५ ४ पछी ते तेन सूर्यना तापम सुपी ना छ, मा शत भूइ भूई मुक्त समाणं' वारवार सुश्ववाभा मावती ते तूमडीने ते पुरुष