________________
प्रमेयचन्द्रिका टीका श. ७ उ. ९ सु. ४ रथमुसलस ग्राम निरूपणम्
७२१
संगा' हे गौतम! तत् तेनार्थेन यावत् - रथमुसलो नाम संग्राम इत्युच्यते । गौतमः पृच्छति - 'रहमुसले णं भंते ! संगामे, वट्टमाणे कइ जणसयसाहस्सीओ वहियाओ ?' हे भदन्त ! रथमुसले खलु संग्रामे वर्तमाने प्रवृत्ते सति कति कियत्यः जनशतसाहरूयः कति जनलक्षाणि हताः ? भगवानाह - गोयमा ! छण्णउई जणसयसाहस्सीओ वहियाओ' हे गौतम! पण्णवतिः जनशतसाहरूयः षण्णवतिलक्षजना हताः । गौतमः पृच्छति - 'तेणं भंते ! मणुया निस्सीला जाव उवत्रम्ना ?' हे भदन्त ! ते खलु मनुष्याः निश्शीलाः शीलवर्जिता यावत् निर्वताः निर्गुणाः निर्मर्यादाः निष्प्रत्याख्यानपोषधोपचासाः रुष्टाः परिकुपिताः, समरघातिताः, अनुपशान्ताः कालमासे द्वेणं जाव रहमुसले संगामे' इस कारण है गौतम वह संग्राम ' रथमुसल' इस नामसे कहा गया है । अब गौतम स्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं - 'रहमुसले णं भंते ! संगामे वट्टमाणे कइ जणसयसाहस्सीओ पहियाओ' हे भदन्त ! जब रथमुसल संग्राम हो रहा था, तब उसमें कितने लाख मनुष्योंका संहार हुआ है ? इसके उत्तर में प्रभु उनसे कहते हैं कि - 'गोयमा' हे गौतम ! 'छण्णउई जणसयसाहस्सीओ बहियाओ' रथमुसल संग्राम में ९६ छियानवें लाख मनुष्यों का संहार हुआ है । अब गौतमने पुनः प्रभु से ऐसा पूछा - 'तेणं भंते ! मणुया निस्सीला जाव उववन्ना' हे भदन्त ! रथमुसल संग्राम में लडनेवाले जितने भी मनुष्य थे वे प्रायः सबके सब शीलरहित थे, यावत् निर्वत- अहिंसा आदि व्रतों से रहित थे, निर्गुण-उत्तरगुणोंसे रहित थे, निर्मर्याद मर्यादा से रहित थे, निष्पत्याख्यान और पोषधोपवास 'से तेणद्वेणं जाव रहमुसले सगामे' हे गौतम! ते रोते संग्रामने '२थभुसण
સંગ્રામ કહ્યો છે,
ગૌતમ સ્વામીને પ્રશ્ન- रहमुसले णं भंते! सगामे वहमाणे कड़ जपस साहसीओ वहियाओ ?" ' महन्त ! न्यारे स्यभुसण संग्राम भयो, ત્યારે તેમાં કેટલાં લાખ માણસે માર્યાં ગયા હતા?' તેના ઉત્તર આપતા મહાવીર પ્રભુ ४ छे - 'गोग्रमा !' हे गौतम! ' छष्णउई जणसयसाहस्सीओ वहियाओ ' રથમુળ સગ્રામમાં ૯૬ લાખ માણુસાના સંહાર થયા હતા.
गौतम स्वाभीने प्रश्न- 'तेणं भंते ! मणुया निस्सीला जाव उववन्ना ? હું બદન્ત! તે સમાસમા લડનારા બધા મનુષ્યા સામાન્યતઃ નિ:શીલ હતા, નિર્માંત अड्डि सा हि व्रतथी रहित) उता, निर्गुषु (उत्तरगुल थी रडित) हुता, भर्याहाथी રહિત હતા, પ્રત્યાખ્યાન અને પેાષધાપવાસથી પણ રહિત હતા. તેએ બધાં રાયુકતએ