Book Title: Bhagwati Sutra Part 05
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 844
________________ ८१२ भगवतीसूत्रे पापानि कर्माणि पापफलविपाकसंयुक्तानि भवन्ति सचेतनत्वेन सुखदुःखसद्भावात् । 'एत्थ णं से कालोदाई संयुद्धे, समणं भगवं महावीरं वंदइ, नमसइ' अत्र अत्रान्तरे खलु स कालोदायी संबुद्धः प्रवोधं प्राप्तः सन् श्रमणं भगवन्तं महावीरं वन्दते, नमस्यति, 'दित्ता, नमंसित्ता एवं बयासी' वन्दित्वा नमस्यित्वा एवं वक्ष्यमाणप्रकारेण अवादी-'इच्छामि णं भंते ! तुम्भं अंतियं धम्म निसामेत्तए' हे भदन्त ! इच्छामि खलु युष्माकम् अन्तिके धर्मम् निशमयितुम्= श्रोतुस् ‘एवं जहा-खंदए, तहेव पव्वइए' एवं यथा स्कन्दकमुनिविपये द्वितीयशतके प्रथमोद्देशके उक्तं तथा अत्रापि वोध्यम् । तथा च-कालोदायी पापफलरूप विपाकवाले अवश्य होते हैं। क्यों कि पापकर्म अपना फल सचेतन में उत्पन्न करते हैं। जीवास्तिकाय सचेतन पदार्थ है अतः वह पाप फल रूप सुख दुःख का वेदन कर सकता हैइसलिये पापकर्म अपना फल उसी अस्तिकाय में उत्पन्न करते हैं। इस अस्तिकाय से भिन्न अन्य अस्तिकायों में नहीं। 'एत्थ णं से कालोदाई संबुद्धे' इस के बाद वे कालोदायीप्रबोधको प्राप्त हो गये सो 'समणं भगव महावीरं वंदइ, नमसइ' उन्होंने श्रमण भगवान महावीरको वंदनाकी, उन्हें नमस्कार किया 'वंदिता नमंसित्ता एव क्यासी' वन्दना नमस्कार कर फिर उन्होंने प्रभुसे ऐसा कहा 'इच्छामि णं भंते । 'तुझं अंतियं धम्म निसामेत्तए' हे भदन्त ! मैं आपके पास धर्स सुनना चाहता हूं।' एवं जहाखंदए तहेव पव्वइए' लो जैसा स्कन्दक सुनिके विषयमें द्वितीय शतकमें प्रथम उद्देशकमें कहा गया है उसी प्रकारका कथन यहां વિપાકવાળાં અવશ્ય હોય છે કારણ કે પાપકર્મ પિતાનું ફળ સચેતનમાં ઉત્પન્ન કરે છે. જીવાસ્તિકાય સચેતન પદાર્થ છે, તેથી તે પાપફલરૂપ સુખદુ ખનુ વેદન કરી શકે છે. તે કારણે પાપકર્મો પિતાનું ફળ એ જ અસ્તિકામાં ઉત્પન્ન કરે છે. તે અસ્તિકાય સિવાયના બીજ અસ્તિકામાં પાપકર્મો પિતાનું ફળ ઉત્પન્ન કરી શકતા નથી. "एत्थणं से कालोदाई संबुद्धे मस्तियना २१३५नु मा प्रमाणे प्रतिपादन सामनीने सहायी प्रभाष पाभ्या. त्या२मा 'समणं भगवं महावीरं वंदइ, नमसई' तेणे श्रम भगवान महावीरने प नभ२४।२ ४. वंदित्ता, नमंसित्ता एवं वयासी' al-नभ२४।२ ४३रीने तो महावीर प्रभुने २॥ प्रभारे यु- 'इच्छामि णं भंते ! तुभं अंतिय धम्म निसामेत्तए' हे महन्त | मायनी पासे धन-धर्मना स्व३५ने सामणवानी भारी मामलाषा छ 'एवं जहा खंदए तहेव पवइए' २४६४ અણુગારના વિષયમાં બીજા શતકના પહેલા ઉદેશમાં જેવું કાન કરવામાં આવ્યું છે

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