Book Title: Bhagwati Sutra Part 05
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 862
________________ भगवतोत्रे पुरिसे अगणिकार्य उज्जालेइ, एगे पुरिसे अगणिकार्य निवावेइ, एएसि णं भंते! दोन्हं पुरिसाणं कयरे पुरिसे महाकम्मतराए चेव, महाकिरियतराए चेव महासवतराए चेव महावेयणतराए चेव ? कयरे वा पुरिसे अप्पकम्मतराए चेव, जाव अप्पवेयण तराए चेव ? | जेवा से पुरिसे अगणिकार्य उज्जाले जेवा से पुरिसे अगणिकायं निघावे : कालोदाई ! तत्थ णं जे से पुरिसे अगणिकायं उज्जालेइ, से णं पुरिसे महाकम्मतराए चेव, जाव महावेयणतराए चेव, तत्थणं जे से पुरिसे अगणिकायं निद्यावेइ से णं पुरिसे अप्पकम्मतराए चेव, जाव अप्पवेयणतराए चेव । से केणटुणं भंते ! एवं बुच्चइतत्थ णं जेसे पुरिसे जाव अप्पवेयणतराए चेव ? हे कालोदाई ! तत्थ णं जेसे पुरिसे अगणिकार्य उज्जालेइ से णं पुरिसे बहुतरागं पुढविकार्य समारंभइ, बहुतरागं आउक्कार्य समारंभइ, अप्पतराय तेउकार्य समारंभइ, बहुतरागं वाउकायं समारंभइ, बहुतरायं वणस्सइकार्य समारंभइ, बहुतरागं तसकार्य समारंभइ । तत्थ णं जे से पुरिसे अगणिकायं निद्यावेइ, से णं पुरिसे अप्पतरागं पुढविकार्य समारंभइ, अप्पतरागं आउक्कायं समारंभड़, बहुतरागं ते उक्कायं समारंभइ, अप्पतरागं वाउक्कायं समारंभइ, अप्पतरागं वणस्सइकार्य समारंभइ, अप्पतरायं तसकार्य समारंभइ, से तेणट्टेणं कालोदाई ! जाव अप्पवेयणतराए चेव ॥ सू०४ ॥ छाया - द्वौ खलु भदन्त ! पुरुषौ सदृशौ यावत् सदृशभाण्डामत्रोपकरणौ अन्योन्येन सार्द्धम् अग्निकार्य समारभेते, तंत्र खल एकः पुरुषः अग्नि ८३०

Loading...

Page Navigation
1 ... 860 861 862 863 864 865 866 867 868 869 870 871 872 873 874 875 876 877 878 879 880