Book Title: Bhagwati Sutra Part 05
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 798
________________ भगवतीसूत्रे ७६६ एगे पियवालवय सए' ततः खलु तस्य वरुणस्य नागनप्तकस्य एकः प्रियवालवयस्यः बालमित्रम् 'रहमुसलं सगाम संगामेमाणे एगेणं पुरिसेण गाढप्पहारीकए समाणे, अत्थामे, अवले जाव-अधारणिज्जमिति कट्ट' रथमुसलं स ग्रामं स ग्रामयमाणः एकेन पुरुषेण गाढपहारीकृतः सन् अत्यन्ताहतः सन् अस्थामा सामान्येन शक्तिहीनः, अवल:=शरीरशक्तिरहितः, यावतअवीर्यः मानसशक्तिरहितः अपुरुषकारपराक्रमः अधारणीयम् आत्मनो जीवनमात्मना धारयितुमशक्यमिति कृत्वा 'वरुणं णागणत्तुयं रहमुसलाओ संगामाओ पडिणिक्खममाणं पासइ' वरुणं नागनप्तकम् रथमुसलात् संग्रामात् समाधिप्राप्त होकर फिर वे क्रमशः मृत्युको प्राप्त हो गये । 'तए णं तस्स वरुणस्ल णागणतुयस्स एगे पियबालवयंसे' इन नागपौत्र वरुण का एक मियबालवयस्य (बालमित्र)था जो 'रहमुसल संगाम संगामेमाणे एगणं मुरिसेणं गाढप्पहारी कए ससाणे अत्थासे, अबले, जाव अधारणिजमिति कटु' रथमुसल संग्रामसे युद्ध कर रहा था युद्ध करते समय उसे किसी एक पुरुषने आघातवाला करदिया सो वह उसके अत्यन्त आघातसे आहत हुआ सामान्यरूपसे शक्ति हीन होकर शारीरिक बलसे रहित हो गया यावत् मानसिक शक्तिसे विकल बनकर वह पुरुषकार पराक्रमसे साहससे भी रहित हो गया और अब मैं जीवित नहीं रह सकता हूं ऐसा विचार उसे आया सो इस ख्यालसे युक्त होकर उसने 'वरुणं णागणत्तुयं रहमुसलाओ संगमाओ पडिणिक्खममाणं पासई' नागपौत्र वरुणको रथमुसल कालगए। पोताना पानी मातोयना ४२री भने पायोथी प्रतित थ न समाधिमा લીન થઈ ગયા, અને ત્યારબાદ કાળક્રમે મૃત્યુ પામ્યા ___'तएण तस्स वरुणस्स णागणत्तुयस्स एगे पियवालदयसे' ते नागपौत्र १२७ने मे मानभित्र हतो, रे 'रहमुसलं सगाम सगामेमाणे एगेणं पुरिसेणं गाढप्पहारीकए समाणे अत्थामे, अवले, जाव अधारणिज्जमिति कट्ट રથમુસળ સંગ્રામમાં લડતે હતે લડતા લડતાં તે કઈ પુરુષ (દ્ધા) ના બાણથી ઘાયલ થયે આ રીતે ઊંડે ઘા વાગવાથી તે શકિતહીન થઈને શારીરિક બળથી રહિત થઈ ગયે, માનસિક શકિતથી પણ તે રહિત થઈ ગયો, તેથી તે પુરુષકાર પરાક્રમથી-સાહસથી પણ રહિત થઈ ગયે તેણે વિચાર કર્યો કે હવે હું આ યુદ્ધમાં 2ी शीश नाही-था। समयमा भारी प्राए न्यास्यां श 'वरुण' णागणत्तय रहमुसलाओ संगामाओ पडिणिक्खममाणं पासई' न्यारे तेना भनभा उपयुत

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