Book Title: Bhagwati Sutra Part 05
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 814
________________ ७८२ भगवतीमत्रे कस्य चैत्यस्य अदूरसामन्ते वहवः अन्ययूथीकाः परिवसन्ति, तद्यथा-कालोदायी, शैलोदायी, शैवालोदायी, उदयः, नामोदयः, अन्यपालकः, शैलपालकः शङ्खपालकः, सुहस्ती गाथापतिः । ततः खलु तेषाम् अन्ययथिकानाम् अन्यदा कदाचित् एकत्र समुपागतानां सन्निविष्टानाम् सन्निपण्णानाम् अयमेतद्रपो मिथः कथा समुल्लापः समुदपधत-एवं खलु श्रमणः ज्ञातपुत्रः पञ्च अस्तिकायान् प्रज्ञापयति-तद्यथा-धर्मास्तिकायम्, यावत्-आकाशास्तिकायम् । तत्र खलु श्रमणः साम ते, बहवे अन्नउत्थिया परिवसंति) उस गुणशिलक चैत्यके, न अधिक दूर और न अधिक पास किन्तु नजदीकमें अनेक अन्य यूथिकजन रहते थे (तंजहा) वे इस प्रकारसे हैं । (कालोदाई, सेलोदाई, सेवालोदाई, उदए, नामुदए, नम्मुदए, अन्नवालए, सेलवालए, सुहत्थी गाहावई) कालोदायी, शैलोदायी, शैवालोदायी, उदय, नामोदय, नर्मोदय अन्यपालक, शैलपालक, शंखपालक, सुहत्थीगाधापति (तएणं तेसिं अन्नउत्थियाणं अन्नया कयाई एगयओ समुवागयाण सनिविट्ठाणं सन्निसम्नाणं अयमेयारूवे मिहोकहासमुल्ला समुपज्जित्था) एक समयकी बात है कि वे अन्यतीर्थिकजन कहींसे आकर एक स्थान पर अच्छी तरहसे आनन्द के साथ बैठे हुए थे सो परस्परमें उनका यह इस प्रकारका वार्तालाप हुआ (एवं खलु समणे नायपुत्ते पंच अस्थिकाए पनवेइ) श्रमण ज्ञातपुत्र महावीरने पांच अस्तिकाय कहे हैं (तंजहा) , पृथ्वी शिलाप४४ तु, तेनु वर्णन ४२,(तस्सण गुणसिलयस्स चेइयस्स अदूरसामते, वहवे अनउत्थिया परिवसति) ते शुशुशिल चैत्यनी मधि २ ५९ नही मने અધિક પાસે પણ નહી એ સ્થળે અનેક અન્ય યૂથિક જન (અન્ય મતવાળા લેકે २ता उता (तनहा) तभना नाम मा प्रमाणे समrai- (कालोदाई, सेलोदाई, सेवालोदाई, उदए, नामुदए, नम्मदए, अन्नवालए, सेलवालए, सखवालए, मुहत्थी गाहाचई) सहायी, शसायी, शवासहाय, अध्य, नामा:य, नाट्य, मन्य पास, शाas, A , सुस्ती मने. यापति. (तएण तेसिं अन्नउत्थियाण अन्नया कयाइं एगयओ समुवागयाण सन्निविट्ठाण , सनिसनाणं अयमेयारूवे मिहो कहासमुल्लावे समुपजित्था) से समय मेधुं मन्यु ते અન્યતીર્થિક લેકે, પિતપતાને સ્થાનેથી આવીને કેઈ એક જગ્યાએ આન દપૂર્વક બેઠાં હતાં ત્યારે તેમની વચ્ચે આ પ્રમાણે વાર્તાલાપ ચાલ્યો (एवं खलु समणे नायपुत्ते पच अत्थिकाए पन्नवेइ - तजहा ) श्रमा ज्ञातपुत्र महावी२ मा प्रभारी पांय मस्तिया या छ- (धम्मत्थिकाय जाव

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