Book Title: Bhagwati Sutra Part 05
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 827
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श. ७ उ. १० सू. १ धर्मास्तिकायादिवर्णनम् ७९५ विशेषेण प्रकटा प्रतीता अविमकटा वर्तते 'अय चणं गोयमे अम्ह अदूरसामंतेनं वीइत्रयइ' अयं च खलु गौतमः इन्द्रभूतिरनगारः अस्माकम् अदूरसामन्तेन पार्श्वभागेन व्यतित्रजति, 'तं सेयं खलु देवाणुप्पिया ! अम्हे गोयमं एयमहं पुच्छिए त्ति कट्टु अन्नमन्नम्स अंतिए एयम पडिसृणंति' भो देवानुप्रियाः ! तत् श्रेयः = योग्यं खलु अस्माकम् गौतमम् एतमर्थ प्रष्टुमिति कृत्वा = विचार्य अन्योन्यस्य अन्तिके एतमर्थ वर्णितं विषय प्रतिशृण्वन्ति - स्वीकुर्वन्ति 'एयमहं पडिणित्ता जेणेत्र भगवं गोयमे तेणेव उवागच्छंति' एमर्थ प्रतिश्रुत्य स्वीकृत्य यत्रचैव भगवान् गौतगः इन्द्रभूतिः आसीत् तत्रैव उपागच्छन्ति, 'तेणेव उवागच्छित्ता भगवं गोयमं एवं वयासी' तत्रैव उपागत्य भगवन्तं गौतमम् एवं वक्ष्यमाणप्रकारेण अवादिषु :- 'एव खल महावीर द्वारा कही गई यह अस्तिकायकी वक्तव्यता हमलोगों को विशेषरूप से प्रतीत नहीं है इसलिये 'अयंच णं गोयमे अम्हं अदूरसामतेणं चीsaar' देखो ये गौतम हमलोगों के पाससे होकर निकले हैं ' सेयं खलु देवाणुपिया ! अम्हं गोयसं एयमहं पुच्छित्तए निकट्टु अन्नमन्नस्स अंतिए एयम पडिसुर्णेति' सो हमलोगों को हे देवानुप्रियो ! यह योग्य है कि हमलोग उनसे इस बात को पूछें ऐसा कहकर उन सबने आपस में इस उनसे पूछने की बात को स्वीकार कर लिया 'एयमहं पडिणित्ता जेणेव भगवं गोयमे तेणेव उवागच्छति' इस बातको स्वीकार करके वे सबके सब जहां पर भगवान् गौतम थे उस स्थान पर आये । 'तेणेव उवागच्छित्ता भगवं गोयमं एवं वयासी' वहां पर आकरके उन्होंने भगवान् गौतमसे ऐसा कहा 1 અસ્તિકાયના વિષયમાં જે પ્રતિપાદન કરવામાં આવ્યુ છે, તેની આપણને વિશેષરૂપે अतीति थष्ठ नथी ' अयं च ण गोयमे अम्ह अदूरसामंते णं वीडवयइ अत्यारे मा गौतम व्यायली याथी पसार था रह्या े ' त सेयं खलु देवाणुपिया ! अम्ह गोयमं एयमट्ठे पुच्छित्तए त्ति कट्टु अन्नमन्नस्स अतिए एयमट्ठ पडिमुणेति' तो मायने या सुरत आप्त थह है આ ગૌતમને જ આ વિષયમા આપણે પૂછવું જોઇએ આ પ્રમાણે આપસમાં વાતચીત કરીને તેમણે ગૌતમ સ્વામીને અસ્તિકાયા વિષે પ્રશ્ન પૂછવાની વાતનેા સ્વીકાર કરી લીધા एयमह पडि सुणित्ता जेणेव भगव गोयमे तेणेव उवागच्छति' मा प्रमाणे निर्णय हरीने तेथेो जधा ल्या गौतम स्वामी हता, त्यां याव्या "तेणेत्र उवागच्छित्ता भगव गोयम एव वयासी' त्या भावाने तेभो लगवान गौतमने या प्रमाणे उधु

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