Book Title: Bhagwati Sutra Part 05
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 808
________________ भगवतीसरे कहिंगच्छिहिइ, कहि उववजिहिइ ?' हे भदन्त ! स खलु वरुणस्य पियवालवयस्यः तस्मात् सुकुलात् अनन्तरम् उद्धृत्य=निःसृत्य कालधर्म प्राप्य कुत्र गमिष्यति. कुत्र उत्पत्स्य ते ? भगवानाह- 'गोयया ! महाविदेहे वाले सिज्झिहिइ जाव अंतं करेहिइ' हे गौतम ! स वरुणस्य प्रियवालवयस्यः सुकुलान्मरणानन्तरं महाविदेहे वर्षे क्षेत्र सेत्स्यति-सिद्धि प्राप्स्यति, यावत्-भोत्स्यते, मोक्ष्यते परिनिर्वास्यति सर्वदुःखानामन्तं करिष्यतीत्यर्थः । अन्ते गौतमः भगवद्वाक्यं स्वीकुर्वन्नाह- 'सेव भंते ! सेवं भंते ! त्ति' हे भदन्त ! तदेवं भवदुक्तं सत्यमेव, हे भदन्त ! तदेव भवदुक्तं सत्यमेवेति ।। मृ० ६ ॥ इति श्री-विश्वविख्यात-जगहल्लभ-प्रसिद्धवाचक-पञ्चदशभापाकलित-ललितकलापालापक-प्रविशुद्ध-गद्यपद्यनैकग्रंथनिर्मापक-बादिमानमर्दक-श्रीशाहूच्छत्रपति-कोल्हापुरराज-प्रदत्त "जैनशास्त्राचार्य' पदभूपित कोल्हापुरराजगुरु-बालब्रह्मचारि- जैनाचार्य-जैनधर्मदिवाकर-पूज्यश्री-घासीलालचतिविरचितायां "श्रीभगवतीमत्रस्य" "प्रमेयचन्द्रिका"ऽऽख्यायां व्याख्यायां सप्तमशतकस्य नवमोद्देशः समाप्तः ॥७-९॥ अब गौतम प्रभुसे ऐसा पूछ रहैं हैं कि हे भदन्त ! वह वरुणका प्रिय बालसखा उस सुकुलसे निकल कर-मर कर कहीं जायगा-कहाँ उत्पन्न होगा ? उत्तरमें प्रभु कहेते हैं- 'गोयमा! महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ जाव अंत करेहिह' हे गौतम! वह वरुणका बालसखा उस मुकुल से मर कर महाविदेह में उत्पन्न होगा और वहां से सिद्धिगतिको प्राप्त करेगा- यावत् पदले यहाँ 'मोत्स्यते, मोक्ष्यते, परिनिर्वास्थति' इन पदोका ग्रहण हुआ है। इस तरहसे वह समस्त दुःखोंका अन्तकर्ता होगा। अब अन्तमें गौतम स्वामी भगवान् के उववजिहिड?' महन्त! वरुन ते प्रिय माससमा त उत्तम मांथा भर પામીને કયાં જશે? કયા ઉત્પન્ન થશે? उत्तर- 'गोयमा ! महाविदेहेवासे सिज्झिहिइ, जाव अंतं करेहिइ' હે ગૌતમ! તે ત્યાંથી મરીને મહાવિદેહ ક્ષેત્રમાં મનુષ્યની પર્યાયે ઉત્પન્ન થશે, અને તે ભવ પૂરો કરીને સિદ્ધ ગતિ પ્રાપ્ત કરશે અહી “નારા પરથી નીચે સુત્રપાઠ ગ્રહણ यथा छ- "भोत्स्यते. मोक्ष्यते. परिनिर्वास्यति मुद्ध यश, भुत यश, समरत भनि। આયતિક ક્ષય કરશે અને એ રીતે તે સમસ્ત દુઃખને અત કરી નાખશે.

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