Book Title: Bhagwati Sutra Part 05
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 801
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श. ७ उ.९ सू.५ वरुणनागनप्तकचरित्रम् कालगतः कालधर्म प्राप्तवान् । 'तए णं तं वरुणं णागणत्तुयं कालगय जाणित्ता, ततः खलु तं वरुणं नागनप्तृक कालगतं कालधर्मप्राप्तं ज्ञात्वा 'अहासन्निहिएहि वाणमंतरेहिं देवेहिं दिव्वे सुरभिगंधोदगवासे बुढे' यथासन्निहितैःसमीपस्थितैः वानव्यन्तरैः देवैः दिव्या सुरभिगन्धोदकवर्षा वृष्टा, 'दसद्धवण्णे कुसुमे निवाडिए' दशार्द्धवर्णानि पञ्चवर्णविशिष्टानि कुसुमानि निपातितानि दिव्वे य गीय-गंधवनिनादे कए यावि होत्था' दिव्यश्च गीत-गन्धर्वनिनादः कृतश्चापि अभवत् । 'नए णं तस्स वरुणस्स णागत्तुयम्स तं दिव्वं देविड्डि, 'दिव्यं देवज्जुइं दिव्वं देवाणुभागं मुणित्ता य, पासित्ता य' ततः खलु तस्य वरुणस्य नागनप्तकस्य तां दिव्यां देवद्धिम् , दिव्यां देवद्युतिम् , दिव्यं देवानुभावं श्रुत्वा च दृष्ट्वा च "वहुजणो अन्नमन्नस्स एवं आइक्खड जाव-परूवेड-' आणुपुवीए कालगए' शल्यको दूर करके फिर वह क्रमशः कालधर्मगत हो गया 'तएणं त वरुणं णागणत्तुयं कालगय जाणित्ता अहासन्निहिएहिं वाणमंतरेहिं देवेहिं दिवे सुरभिगंधोदगवासे वुढे' इधर वरुण को जो कि नागका पौत्र थे कालधर्मगत जानकर पास में रहे हुए वानव्यन्तर देवोंने दिव्य सुरभिगंधोदककी वर्षाकी । 'दसवण्णे कुसुमे निवाडिए' पंचवर्णके पुष्पोंको उच्छानुसार स्खूब वरसाया 'दिवे य गीयगंधव्वनिनादे कए यावि होत्था ' तथा दिव्य गीत गन्धर्व शब्दोंका भी उन्होंने अच्छी तरहसे उच्चारण किया 'तए णं तस्स वरुणस्स णागणत्तुयस्स त दिव्वं देविडूटिं, दिव्वं देवज्जुइ, दिव्वं देवाणुभागं सुणित्ता य पासित्ता य' इस प्रकार उस वरुण नागपौत्रकी उस दिव्य देवद्धिको, दिव्य देवधुतिको, दिव्य देवानुभावको ६२ ४यु 'सल्लुद्धरुण करेत्ता आणुपुब्बीए कालगए' शराभांथी मायने ४ढी તેણે પિતાના પાપકર્મોની આલેચગા કરી, અને તે કાળક્રમે કાળધર્મ પામ્ય “તti वरूणागणत्तुय कालगय जाणित्ता अहासन्निहिएहिं वाणम तरोहिं देवेहि दिव्वे सुरुभिगधोदगवासे वुटे' वे त्यो १३]ने जय पामेला एन. सभापमा २९सा वानव्य तर वाम्मे हिम्य सुगधा।२ जना वृष्टि ४२0, 'दसद्धवणे कुसुमे निवाडिए' मते ५in qatam नी वृष्टि ४री 'दिव्वे य गीय-गंधन निनादे कए यावि होत्था' तथा तमगे हिव्य गीत- शण्टा ५५ भूम अभ्या२९] यु. 'तएणं तस्स वरुणस्स णागणतुयस्स तं दिव्वं देविति, दिव्वं देवज्जुई, दिव्वं देवाणुभागं मुणित्ता य पासित्ता य' मा ४२नी ते नागपत्र વરુણની દિવ્ય દેવસમૃદ્ધિને, દિવ્ય દેવઘુતિને અને દિવ્ય દેવપ્રભાવને સાંભળીને તથા

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