Book Title: Bhagwati Sutra Part 05
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीमत्रे 'जाइं णं भंते ! मम पियवालवयंसस्स वरुणस्स णागणत्तुयस्स सीलाई, वयाई, गुणाई, वेरमणाई, पञ्चक्खाण-पोसहोववासाई' हे भदन्त ! यानि खलु मम पियवालवयस्यस्यम्बालमित्रस्य वरुणस्य नागनप्तृकस्य शीलानि फलानपेक्षशुभक्रियामवृत्तिरूपाणि, व्रतानि स्थूलपाणातिपाविरमणाधणुव्रतानि, गुणाः उत्तरगुणाः, विरमणानि-रागद्वेपनिवृत्तिरूपाणि, प्रत्याख्यान-पोषधोपवासाः सन्ति 'ताई णं ममं पि भवंतु त्ति कटु सन्नाहपढें मुयइ' तानि खलु गीलादीनि ममापि भवन्तु इति कृत्वा सन्नाहपट्ट मुञ्चति, 'मुइत्ता सल्लद्धरणं करेड्' मुक्त्वा सन्नाहपर्टी परित्यज्य शल्योद्धरणं शल्यनिष्काशनं करोति, 'सल्लुद्धरण करेत्ता आणुपुबीए कालगए' शल्योद्धरणं कृत्वा आनुपूर्व्या अनुक्रमेण की ओर कर लिया तथा पर्यङ्कासन लगाकर दोनों हाथोंको जोडकर उसने उस कृत अंजलि को मस्तक पर इधरले उधर घुमाकर इस प्रकारके पाठका उच्चारण किया 'जइ णं भंते ! मम पियवालवयंसस्स वरुणस्स णागणत्तुयस्स' सीलाइं, वयाई, गुणाई वेरमणाइ पञ्चवखाणपोसहोववासाई, हे भदन्त ! मेरे प्रिय बालसखावरुण नागपौत्रके जो फलानपेक्ष शुभक्रिया प्रवृत्तिरूप शील, स्थूलपाणातिपात विरमण
आदिरूप अणुव्रत, उत्तरगुणरूप गुण, रागद्वेषनिवृत्तिरूप विरमण, प्रत्याख्यानपोषधोपचास हैं 'ताई णं मम पि भवंतु' वे सब मुझे भी हों त्तिक? सन्नाहपट्ट मुयइ' ऐसा कहकर उसने अपने शरीरपर धारण किये हुए कवचको दूर कर दिया 'मुइत्ता सल्लुद्धरणं करेइ' कवचको
शरीरसे उतार कर फिर उसने शल्यको दूर किया 'सल्लुद्धरणं करेत्ता સંથારાને આસને બેસીને, પૂર્વ દિશા તરફ મુખ કરીને, અને પર્યકાસન વાળીને બન્ને હાથ જોડીને મસ્તક પર ત્રણવાર તેમને ઘુમાવીને, તેમણે આ પ્રકારના પાઠનું ઉચ્ચારણ उयु - जइ णं भंते ! मम पियवालवयं सस्स वरुणस्स णागणत्यस्स सीलाई, वयाई, गुणाई, वेरमगाई, पच्चकखाणपोसहोववासाई' हे सह-त! भा२५ (प्रय બાળસખા, નાગપૌત્ર વરુણનું જે ફલાનપેક્ષ (ફળની અપેક્ષા વિનાનું) શુભ ક્રિયા પ્રવૃત્તિરૂપ શીલ છે, રસ્થૂલ પ્રાણાતિપાત વિરમણ આદિરૂપ જે અણુવ્રત છે, ઉત્તરગુણરૂપ જે ગુણ છે, रागद्वेष निवृत्ति३५२ विरभ छ, भने प्रत्याभ्यान-पोषधोपवास छ, 'ताइ णं मम पि भवतु' ते समस्त Aail भा॥ ६॥२॥ ५९] डर था। त्ति कट्ट सम्माहपट्ट rગ આમ કહીને તેણે પોતાના શરીર ઉપર ધારણ કરેલું બખતર ઉતારી નાખ્યું. 'मुहत्ता सल्लुधरणं करेइ भतरने ढिी नाभान तेरी शरीरमांथा मा३५ शयने

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