Book Title: Bhagwati Sutra Part 05
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 788
________________ - ७६ भगवतीसूचे च्छित्ता रहमुसलं संगामं ओयाओ' उपागत्य रथमुसलं संग्रामम् उपयातः प्राप्तः 'तए णं से वरुणे णागणतुए रहमुसलं संगामं ओयाए समाणे अयमेयारूवं अभिग्गहं अभिगेण्डइ'-ततः खलु वरुणो नागनप्तकः स्थमुसलं स ग्रामम् उपयातः सन अयम् एतद्रूपं वक्ष्यमाणप्रकारम् अभिग्रह-नियमम् अभिगृह्णाति-स्वीकरोति यत्-'कप्पइ मे रहमुसल स गाम संगामेमाणस्स जे पुचि पहणइ से पडिहणित्तए' कल्पते युज्यते ग्वलु मे मम स्थमुमलं स ग्रामं स ग्रामयमाणस्य यः पूर्व प्रथम प्रहरति स प्रतिद्वन्तु', कल्पते इति मे स प्रतिहननयोग्यो भवतीतिभावः । तथाच स ग्रामे यो मां प्रथमं प्रहरिष्यति तमेव अहं तदनन्तरं प्रहरिष्यामि-इत्यभिग्रहस्याकारः अबसे से नो कप्पडति, अयमेयारूवं अभिग्गहें अभिगेण्हइ' अवशेषः पूर्व जेणेब रहमुसले सगामे तेणेव उवागच्छड' विशाल महाभटोंके समूह के साथ२ जहां रथमुसल संग्राम था वहां पर आये 'उवागच्छित्ता रहमुसलं संगामं ओयाओ' वहां आकर वे उस रथमुसल संग्राममें उपस्थित हुवे 'तएणं से वझणे णागणतुए रहमुसलं संगामं ओयाए समाणे अयलेयारचं अभिग्गह अभिगेण्हइ' वहां उपस्थित होते ही उन नागपौत्र वरुणने ऐसा अभिग्रह ग्रहण किया कि 'कप्पड मे रहशुसलं सगामं संगामेमाणम्स जे पुचि पहणइ से पडिहणित्तए' रथसुसल संग्राम करते हुए मेरे ऊपर जो कोइ व्यक्ति योधा पहिले प्रहार करेगा मै उसी पर बादमें प्रहार करुगा 'अवसेसे नो कप्पई इ. इसके अतिरिक्त ओर किसी पर प्रहार नहीं करूँगा 'अयमेयारूवं अभिग्गह अभिगेण्हइ । इस प्रकारका नियम उस नागतेणेव उवागच्छइ' भने भडा सुलटाना विशण समूडनी साथै न्यां स्थभुसत स या. यासतो तो त्या माव्या 'उवागच्छित्ता रहमुसलं सगामओयाओ' त्या भावाने तया ५९५ २यभुसण सभाममा ले गया. 'तएणं से वरुणे णागणत्तुए रहसुसल संगाम ओयाए समाणे अयमेयारूवं अभिग्गहं अभिगेण्हइ' રથમુસળ સ ગ્રામમાં દાખલ થતાં જ તે નાગપૌત્ર વરુણે એવો અભિગ્રહ ધારણ કર્યો કે 'कप्पइ मे रहसुसल संगाम संगामेमाणस्स जे पुदि पहणइ से पडिहणित्तए' “જે કઈ હો આ રથમુસળ સંગ્રામમાં લડતા લડતા મારા ઉપર પહેલાં પ્રહાર કરશે, तेना ५२१ हु त्या२ मा डा२ ४शश. 'अवसेसे नो कप्पईड.. सिवाना . ५९ व्यति ५२ हुँ प्रडा२ ४शश नही.' 'अयमेयारुवं अभिग्गहं अभिगेण्हई'

Loading...

Page Navigation
1 ... 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808 809 810 811 812 813 814 815 816 817 818 819 820 821 822 823 824 825 826 827 828 829 830 831 832 833 834 835 836 837 838 839 840 841 842 843 844 845 846 847 848 849 850 851 852 853 854 855 856 857 858 859 860 861 862 863 864 865 866 867 868 869 870 871 872 873 874 875 876 877 878 879 880