Book Title: Bhagwati Sutra Part 05
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 789
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श.७ उ. ९ मू. ५ वरुणनागनप्तृकचरित्रम् ७५७ प्रहारकातिरिक्तो भटः नो मम प्रहत्तु कल्पते न मम महारयोग्यो भवतिइति, अयं वरुणः एतद्रूपं पूवोक्तस्वरूपम् अभिग्रहम् अभिगृह्णाति-स्वीकरोति, 'अभिगेण्हेत्ता रहमुसलं स गामं स गामेइ' अभिगृह्य-अभिग्रहं कृत्वा स वरुणः रथमुसलं सग्रामं स ग्रामयति । 'तए णं तस्स वरुणस्स नागनसुयस्स रहमुसल सगामं स गामेमाणस्स' ततः खलु तस्य वरुणस्य नागनप्तकस्य स्थमुसल स ग्रामं संग्रामयमाणस्यागे 'एगे पुरिसे सरिसए, सरिसत्तए, सरिसबए, सरिससंडमत्तोवगरणे रहेणं पडिरहं हव्वं आगए ' एकः पुरुषः सदृशः तत्समानः सदृशत्वकू-तत्समानत्वचावान्, सदृशवयाः तत्समानवयस्कः, सदृशभाण्डमात्रोपकरणः, सहशातत्सदृशा भाण्डमात्रा-प्रहरणकोशादिरूपा, उपकरणं कवचादिकं यस्य सः तादृशः पुरुषः रथेन सह रथोपविष्ट इत्यर्थः प्रतिरथम् नागनप्तकरथं पति-वरुणनागनप्तकरथस्य पुरत इत्यर्थः 'हव्वं' इति शीघ्रम् आगतः उपस्थितः। 'तए णं से पुरिसे वरुणं णागणत्तुयं एवं पौत्र वरुणने ग्रहण किया 'अभिगेण्हित्ता' इस प्रकारके नियमको धारण करके वे वरुण 'रहमुसल संगाम संगामेइ' रथमुसल संग्राम करनेको तैयार हो गये 'तएणं तस्स वरुणस्स नागनत्तुयस्स रहमुसल संगामं संगामेमाणस्स एगे पुरिसे सरिसए, सरिसत्तए, सरिसन्चए, सरिसभंड्मत्तोवगरणे रहेणं पहरिहं हव्वं आगए' रथमुसल संग्राम करनेको तैयार हुए उस नागपौत्र वरुणके रथके सामने कोई एक पुरुष जो कि उन्हींके जैसा था, उन्हीं के जैसी चमडीवाला था. उन्हीं के समान उमर वाला था तथा उन्हीं के जैसी प्रहरण कोशादिरूप भाण्डमात्रा वाला एव कवचादिरूप उपकरणवाला था रथ पर बैठकर आकर उपस्थित हो गया 'तए णं से पुरिसे वरुणं णागणमा- अURन नियम ते नागपौत्र वरुणे ग्रए ध्या. 'अभिगेण्डित्ता २ प्रश्न मनिवड धा२५ ४शन ते १२६ 'रहमुसलं संगामं सगामेइ ' २थमुसहर सयाममा सवाने तयार थ६ गये। 'तएणं तस्स वरुणस्स नागनत्तयस्स रहमुसलं संगामं संगामे माणम्स-एगे पुरिसे सरिसए, सरिसत्तए, सरिमचए, सरिसभंडमत्तोवगरणे रहेणं पहरिए हव्वं आगए' २थ सदा सयाममा पाने तयार २४ ગયેલા તે નાગપૌત્ર વરુણના રથની સામે કોઈ એક પુરુષ (દ્ધો) આવી પહોચ્યા. તેની ઉમર વરુણના જેટલી જ હતી, તેની ચામડીને રંગ પણ વરુણના જેવો જ હતા, તેની પાસે વરુણના જેવાં જ ખડગ આદિ શસ્ત્રો અને ધનુષ આદિ અસ્ત્રો હતા, તેની પાસે વરુણના જેવા જ કવચ આદિ ઉપકરણો હતા. એ તે પુરુષ પિતાના રથમાં

Loading...

Page Navigation
1 ... 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808 809 810 811 812 813 814 815 816 817 818 819 820 821 822 823 824 825 826 827 828 829 830 831 832 833 834 835 836 837 838 839 840 841 842 843 844 845 846 847 848 849 850 851 852 853 854 855 856 857 858 859 860 861 862 863 864 865 866 867 868 869 870 871 872 873 874 875 876 877 878 879 880