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व्याख्याप्रज्ञप्ति ॥३७८॥
अने अप्रत्याख्यानिकी क्रिया लागे अने मिथ्यादर्शनप्रत्ययिकी क्रिया कदाच लागे अने कदाच न लागे अने हवे गवेषण करतां ज्यारे ते चोराएलुं करिया' पार्छ मळी आवे त्यारपछी ते बधी क्रियाओ प्रतनु थइ जाय हे. [प्र०] हे भगवन् ! करियाणाने
४५ शतके बेचता गृहस्थनुं भांड-करियाणु, करियाणुं खरीद करनारे खरीधु-तेने माटे सत्यंकार-खात्री-बार्नु आप्यु पण हजु ते करियाणु
उद्देशः६ अनुपनीत छे-लइ जवायुं नथी अर्थात् ते बेचनारने त्यां छे, तो ते वेचनार गृहपतिने ते करियाणाथी शुं आरंभिकी यावत् मिथ्या
॥३७८॥ दर्शनप्रत्ययिकी क्रिया लागे!, अने ते खरीदनारने ते करियाणाथी शुं आरंभिकी यावत्-मिथ्यादर्शनप्रत्ययिकी क्रिया लागे? [उ.] हे गौतम ! ते गृहपतिने ते भांड-करियाणाथी आरंभिकी यावत्-अप्रत्याख्यानिकी क्रिया लागे, अने मिथ्यादर्शनप्रत्ययिकी क्रिया कदाच लागे अने कदाच न लागे अने खरीद करनारने ते बधी क्रियाओ प्रतनु होय छे. [प्र०] हे भगवन् ! भांडने वेचता गृहपतिने त्यांथी यावत् ते भांड उपनीत कर्यु-खरीद करनारे पोताने त्यां आण्यु-होय त्यारे ते खरीद करनारने ते भांडथी शुं आरंभिकी क्रिया वगेरे पांच क्रियाओ अने गृहपतिने ते भांडथी शुं आरंभिकी वगेरे पांच क्रियाओ लागे ? [उ०] हे गौतम! ते भांडथी ते खरीद करनारने हेठळनी मोटा प्रमाणवाळी-चारे क्रियाओ लागे अने मिथ्यादृष्टि होय तो मिथ्यादर्शनप्रत्ययिकी क्रिया लागे अने मिथ्यादृष्टि न होय तो मिथ्यादर्शनप्रत्ययिकी क्रिया न लागे ए प्रमाणे मिथ्यादर्शन-क्रियानी भजनावडे गृहस्थने ते बधी क्रियाओ ओछा प्रमाणमां होय छे.
गाहावतिस्स णं भंते ! भंडं जाव धणे य से अणुवणीए सिया? एवंपि जहा भंडे उवणीए तहा नेयव्वं चउत्थो आलावगो, धणे से उवणीए सिया जहा पढमो आलावगो भेडे य से अणुवणीए सिया तहा नेयम्वो,
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