Book Title: Bhagvati Sutram Part 02
Author(s): Sudharmaswami,
Publisher: Hiralal Hansraj
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व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥५५६॥
७ शतके उद्देशः९ ॥५५६।।
वरुणना स्थनी सामे तेना जेवो समानवयवाळो, समानत्वचावाळो अने समान अवशस्त्रादि उपकरणवाळो एक पुरुष रथमां बेसीने शीघ्र
आव्यो. त्यारबाद ते पुरुषे नागना पौत्र वरुणने एम कह्यु के 'हे नागना पौत्र वरुण ! तुं मने प्रहार कर.' त्यारे ते नागना पौत्र | वरुणे ते पुरुषने एम कडं के हे देवानुप्रिय ! ज्यांसुधी हुं प्रथम न हणाउं त्यांसुधी मारे प्रहार करवो न कल्पे, माटे पहेलां तुंज प्रहार कर.' ज्यारे ते नागना पौत्र वरुणे ते पुरुषने एम कात्यारे ते कुपित थएलो क्रोधाग्निथी दीपतो धनुषने ग्रहण करे छे, धनुषने ग्रहण करी बाणने ग्रहण करे छे, बाणने ग्रहण करी अमुक स्थाने रहीने तेने कानपर्यंत लांq खेंचे छे लांबु खेंचीने ते नागना पौत्र वरुणने सख्त प्रहार करे छे. त्यारबाद ते पुरुषथी सख्त घवायेल नागनो पौत्र वरुण कुपित थइ यावत् क्रोधाग्निथी दीपतो धनुषने ग्रहण करे हे, धनुपने ग्रहण करी बाणने ग्रहण करे छे, बाणने ग्रहण करी तेने कानपर्यंत लांबुं खेंचे छे, खेंचीने जे पुरुषने एक घाए पत्थरना टुकडा थाय तेम जीवितथी जूदो करे छे. हवे ते पुरुषथी सख्त धवायेल ते नागनो पौत्र वरुण शक्तिरहित, निर्बल, वीर्यरहित, पुरुषार्थ अने पराक्रमरहित थयेलो पोते 'टकी नहि शके' एम समजी घोडाओने थोभावे छे, थोभावीने स्थने पाछो फेरवे छे, रथने पाछो फरवीने रथनुशल संग्रामथी बहार नीकळे छे, बहार नीकळी एकान्त भागमा आवे छे, एकान्त भागमा आवी घोडाओने थोभावे छे, थोभावी रथने उभो राखे छे, उभो राखी रथथी उतरे छे, उतरीने रथथी घोडाओने छुटा करे छे, छुटा करी घोडाओने विसर्जित करे के विसर्जित करी डाभनो संथारो पाथरे छे, डाभनो संथारो पाथरी पूर्वदिशा सन्मुख ते डामना संथारा उपर बेसे छे. पूर्वाभिमुख पर्यकासने डाभना संथारा उपर बेसी हाथ जोडी यावत् ते नागनो पौत्र वरुण आ प्रमाणे बोल्योपूज्य अर्हतोने नमस्कार थाओ, यावत् जेओ [ सिद्धगतिने ] प्राप्त थया छे. श्रमण भगवान् महावीरने ममस्कार धाओ, जे तीर्थनी
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