Book Title: Bhagvati Sutram Part 02
Author(s): Sudharmaswami, 
Publisher: Hiralal Hansraj

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Page 233
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥५५५॥ ७ शतके उदेशः९ प्रतिलाभतो-सत्कार करतो-निरन्तर छह छडुना तप करवावडे आत्माने वासित करतो विचरे छे. त्यारवाद ज्यारे ते नागना पौत्र वरुणने राजाना अभियोगथी (आदेशथी) गणना अभियोगथी,बलना अभियोगथी स्थमुशल संग्राममां जवा माटे आज्ञा थइ त्यारे षष्ठभक्त करनार । ते(वरूण) अष्टमभक्तने वधारे छे, अने अष्टमभक्तने वधारीने कौटुंबिक पुरुषोने बोलावे के. बोलावीने तेणे ए प्रमाणे कडु के हे देवा. नुप्रियो! चारघंटावाळा अश्वरथने सामग्रीसहित हाजर करो;अने घोडा, हाथी, रथ अने प्रवर-योद्धाओथी युक्त चतुरंग सेनाने तैयार करो यावत् तैयार करीने ए मारी आज्ञा पाछी आपो. त्यारपछी ते कौटुम्बिक पुरुषो यावत् तेनो स्वीकार करीने छत्रसहित,ध्वजासहित [रथने] शीघ्र हाजर करे घोडा, हाथी, रथ-[ अने प्रतर योद्धाओ सहित सेनाने ] यावत तैयार करे छे; तैयार करी ज्यां नागनो पौत्र वरुण के [त्यां आवी] आज्ञा पाछी आवे छे. त्यारपछी ते नागनो पौत्र वरुण ज्यां स्नानगृह छे त्यां आवे छे, आवीने कूणिकनी पेठे यावत् कौतुक (मपीतिलकादि) अने मंगलरूप प्रायश्चित करीने सर्वालंकारथी विभूषित थयेलो कवचने पहेरी बांधी, कोरंटनी माळायुक्त धारण कराता छत्रवडे सहित अनेक गणनायको यावत् दूत अने संधिपालनी साथे परिवरेलो स्नानगृहथी बहार नीकळे ले. बहार नीकळीने, ज्या बहारनी उपस्थानशाला छे, ज्यां चारघंटाघाळो अश्वरथ छे, त्यां आवीने चारघंटावाला अश्वरथ उपर चडे छे, चडीने घोडा, हाथी, रथ-[ अने प्रवर योद्धावाळी सेना ] साथे महान् सुभटोना समूहबडे यावत् विंटायेलो ज्यां रथमुसल संग्राम छे त्यां आवे के, अने त्यां आवी ते रथमुगल संग्राममा उतया. ज्यारे नागनो पौत्र वरुण रथमुसल संग्राममा उतया त्यारे दाते आवा प्रकारना आ आभिग्रहने ग्रहण करे छे-'रथमुशल संग्राममा युद्ध करता मने जे पहेला मारे तेने मारवो कल्पे, बीजाने मारवा कल्पे नहिं.' आवा प्रकारना आ अभिग्रहने धारण करी ते रथमुपल संग्राम करे छे. त्यारवाद रथमुसल संग्राम करता नागना पौत्र For Private and Personal Use Only

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