Book Title: Bhagvati Sutram Part 02
Author(s): Sudharmaswami,
Publisher: Hiralal Hansraj
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व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥५६६ ॥
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हे भगवन् ! जीवोने पापकर्मों पाप-अशुभ फल- विपाक सहित होय ? [उ०] हा होय. [प्र०] हे भगवन् ! पापकर्मो पाप - अशुभ फलविपाकसहित केम होय ? [अ०] हे कालोदायि ! जेम कोइ एक पुरुष सुन्दर, स्थालीमां रांधवावडे शुद्ध (परिपक) अढार प्रकारना दाळ शाकादि व्यंजनोथी युक्त, विपमिश्रित भोजन करे, ते भोजन शरुआतमां सारूं लागे, पण त्यारपछी ते परिणाम पामतां खराब रूपपणे, दुर्गंधपणे 'महास्रव उद्देशकमां का प्रमाणे वारंवार परिणाम पामे छे. ए प्रमाणे हे कालोदायि ! जीवोने पापकर्मो अशुभफल विपाक संयुक्त होय छे.
अस्थि णं भंते! जीवाणं कल्लाणा कम्मा कल्लाणफलविवागसंजुत्ता कांति ?, हंता अस्थि, कहन्नं भंते ! जीवाण कल्लाणा कम्मा जाय कजति ?, कालोदाई से जहानामए केइ पुरिसे मणुन्न थालीपागसुद्धं अट्ठारसबं जणाकुलं ओसहमिस्सं भोषणं भुंजेज्जा, तस्स णं भोयणस्स आवाए नो भद्दए भवइ, तओ पच्छा परिण | ममाणे २ य सुरुवत्ताए सुवन्नत्ताए जाव सुहत्ताए नो दुक्खत्ताए भुज्जो २ परिणमति, एवामेव कालोदाई ! जीवाणं पाणावायवेरमणे जाव परिग्गहवेरमणे कोह विवेगे जाव मिच्छादंसणसल्लविवेगे, तस्स णं आवाए नो मद्दए भवइ, तओ पच्छा परिणममाणे २य सुबत्ताए जाव नो दुक्खत्ताए भुज्जो २ परिणमइ, एवं खलु कालोदाई ! जीवाणं कल्लाणा कम्मा जाव कजंति । (सूत्रं ३०५ ) ।।
[प्र० ] हे भगवन् ! जीवोना कल्याण (शुभ) कर्मों कल्याणफलविपाक संयुक्त होय ? [उ०] हा, कालोदायि ! होय. [प्र० ] हे भगवन् ! जीवोना कल्याण कर्मों कल्याणफलविपाकसहित केम होय ? [अ०] हे कालोदायि ! जेम कोई एक पुरुष सुन्दर, स्थाली मां
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७ शतके उद्देशः १०
॥५६६॥

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