Book Title: Bhagvati Sutram Part 02
Author(s): Sudharmaswami, 
Publisher: Hiralal Hansraj

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Page 237
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥५५९॥ KG www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir करशे. [प्र० ] हे भगवन् ! नागना पौत्र वरुणनो प्रिय बालमित्र मरण समये मरण पामीने क्यां गयो, क्यां उत्पन्न थयो ? [अ०] हे गौतम! ते कोइ सुकुलमां उत्पन्न थयो छे. [प्र० ] हे भगवन् ! त्यांथी मरीने तुरत ते [वरुणनो बाल मित्र ] क्यां जशे ? [अ०] हे गौतम ! ते महाविदेह क्षेत्रमां सिद्धिने पामशे, यावत् [ सर्व दुःखोनो ] अन्त करशे. हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे, हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे, एम कही गौतम यावत् विचरे छे. ॥ ३०३ ॥ भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीमूत्रना सातमा शतकमां नवमा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो. उदेशक १०. तेणें काले तेणं समएणं रायगिहे नामं नगरे होत्था, वन्नाओ, गुणसिलए चेइए, वन्नओ, जाव पुढविसिला पहए, वण्णओ, तस्स णं गुणसिलयस्स चेहयस्स अदूरसामंते बहवे अन्नउत्थिया परिवसंति, तंजहा कालोदाई सेलोदाई सेवालोदाई उदए नामुदए तम्मुदए अन्नवालए सेलवालए संखबालए सुहत्थी गाहावई, तए णं तेसिं अन्नउत्थियाणं भंते ! अन्नया कयाई एगयओ समुवागयाणं सन्निविद्वाणं सन्निसन्नाणं अयमेयारूवे मिहो कहासमुल्लावे समुप्पज्जित्था एवं खलु समणे नायपुत्ते पंच अस्थिकाए पन्नवेति, तंजहा- धम्मत्थिकायं जाव आगासस्थिकार्य, तत्थ णं समणे नायपुत्ते चत्तारि अस्थिकाए अजीवकाए पन्नवेति, तंजहा-धम्मत्थिकार्य अधम्मत्थिकार्य आगासत्धिकार्य पोग्गलत्थिकायं, एगं च समणे णायपुत्ते जीवत्धिकार्य अरूविकार्य जीव For Private and Personal Use Only ७ शतके उद्देशः १० 1194811

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