Book Title: Bhagvati Sutram Part 02
Author(s): Sudharmaswami, 
Publisher: Hiralal Hansraj

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Page 224
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७ शतके उद्देशः२ ॥५४६॥ महाशिलाकंटक संग्राम विकुा पछी ते कूणिक राजा महाशिला कंटक नामे संग्राम उपस्थित थलो जाणी पोताना कौटुम्बिक व्याख्या पुरुषोने बोलावे छे, बोलावीने तेओने एम का के हे देवानुप्रियो ! शीघ्र उदायि नामना पट्टहस्तीने तैयार करो, अने घोडा, हाथी, प्रज्ञप्तिः | रथ अने योद्धाओथी युक्त चतुरंग सेनाने तैयार करो, तैयार करी मारी आज्ञा जलदी पाछी आपो. त्यारबाद ते कूणिकना एम कहे॥५४६॥ वाथी ते कौटुम्बिक पुरुषो हृष्ट तुष्ट थइ यावत् अंजली करीने हे स्वामिन् ! ए प्रमाणे 'जेवी आज्ञा' एम कहीने आज्ञा अने विनयवडे भवचननो स्वीकार करे छे. वचननो स्वीकार करीने कुशल आचार्यांना उपदेशवडे तीक्ष्णमति कल्पनाना विकल्पोथी औपपातिकमूत्रमा कह्या प्रमाणे यावत् भयंकर अने जेनी साथे कोइ युद्ध न करी शके एवा उदायि नामना मुख्य हस्तीने तैयार करे ; घोडा हाथी इत्यादिथी युक्त यावत् [चतुरंग सेनाने तैयार करे छे.] ते सेनाने सज्ज करीने ज्यां कूणिक राजा हे त्यां तेओ आवे छे, आवीने करतल जोडीने] कृणिक राजाने ते आज्ञा पाछी आपेले. त्यारबाद ते कूणिक राजा ज्यां स्नानगृह छे त्यां तेओ आवे छे, अने आवीने स्नानगृहमा प्रवेश करे छे, त्यां प्रवेश करी न्हाइ बलिकर्म (पूजा) करी प्रायश्चित्तरूप (विनोनो नाश करनार) कौतुक (मषीतिलकादि) अने मंगलो करी सलिंकारथी विभूषित थइ, सन्नद्ध बद्ध थइ बख्तरने धारण करी वाळेला धनुदंडने ग्रहण करी, डोकमां आभूषण पहेरी, उत्तमोत्तम चिन्हपट्ट बांधी, आयुध अने प्रहरणोने धारण करी, माथे धारण कराता कोरंटक पुष्पनी माळावाळा छत्र सहित, जेनुं अंग चार चामरोना वाळ वडे बींजायलुं छे, जेना दर्शनथी मंगल अने जय शब्द थाय छे एवो (कूणिक) औपपातिकमूत्रमा कह्या प्रमाणे यावत् आवीने उदायि नामे प्रधानहस्ती उपर चढ्यो. त्यारबाद हारवडे तेनुं वक्षःस्थळ ढंकायेलु होवाथी रति उत्पन्न करतो ओपपातिकसूत्रमा कह्या प्रमाणे वारंवार वींजाता श्वेत चामरोवडे यावत् घोडा, हाथी, रथ अने उत्तम For Private and Personal Use Only

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