Book Title: Bhagvati Sutram Part 02
Author(s): Sudharmaswami, 
Publisher: Hiralal Hansraj

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Page 225
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥५४७॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir योद्धाओथी युक्त चतुरंग सेनानी साये परिवारयुक्त, महान् सुभटोना विस्तीर्ण समूहथी व्याप्त कूणिकराजा ज्यां महाशिलाकंटक संग्राम छे त्यां आवे छे, त्यां आवीने ते महाशिलाकंटक संग्राममां उतर्यो, तेनी आगळ देवनो इन्द्र देवनो राजा शक्र एक मोटुं वज्रना सरं अभेद्य कवच (बख्तर) विकुर्वीने उभो छे. ए प्रमाणे वे इन्द्रो संग्राम करे छे, जेमके एक देवेन्द्र अने बीजो मनुजेन्द्र हवे ते कूणिकराजा एक हाथीवडे पण शत्रुपक्षनो पराजय करवा समर्थ छे. त्यारबाद ते कूणिके महाशिलाकंटक संग्रामने करता नवमल्लकि अनेनवलेच्छक जेओ काशी अने कोशलाना अढार गणराजाओ हता, तेओना महान् योद्धाओने हण्या, घायल कर्या अने मारी नांख्या, तेओनी चिन्हयुक्त ध्वजा अने पताकाओ पाडी नांखी, अने जेओना प्राण मुश्केलीमां छे एवा तेओने [ युद्धमांथी ] चारे दिशाए नसाडी मूक्या. से केणट्टेणं भंते! एवं वृचइ महासिलाकंदर संगामे १, गोयमा ! महासिलाकंटए णं संगामे माणे जे तत्थ आसे वा हत्थी वा जोहे वा सारही वा तणेण वा पत्तेण वा कट्ठेण वा मक्कराए वा अभिहम्मति सवे से जाणए महासिलाए अहं अभिहए म० २, से तेणट्टेणं गोयमा ! महासिलाकंदर संगामे । महासिलाकंटए णं भंते ! संगामे वट्टमाणे कति जणसयसाहस्सीओ वहियाओ १, गोयमा ! चउरासीइं जण ससाहस्सीओ वहियाओ । ते णं भंते! मणुया निस्सील जाव निपञ्चक्खाणपोसहोववासा रुट्ठा परिकुबिया समरवहिया अणुवसंता कालमासे कालं किच्चा कहिं गया कहिं उबवन्ना ?, गोयमा ! ओसन्नं नरगतिरिक्खजोणिएसु उववन्ना ॥ ( सू २९९ ) ॥ For Private and Personal Use Only ७ शतके उद्देशः ९ 1193011

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