Book Title: Bhagvati Sutram Part 02
Author(s): Sudharmaswami,
Publisher: Hiralal Hansraj
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥५४४ः
७ शतके उद्देशः ॥५४४॥
न विकु.. ए प्रमाणे एकवर्ण अने अनेकरूप-इत्यादि चतुर्भगी जेम छटा शतकना नवमा उद्देशकमां कही छे तेम अहीं पण कहेवी; | परन्तु एटलो विशेष के के अहीं रहेलो साधु अहीं रहेला पुद्गलोने ग्रहण करी विकुर्वे, चाकीनुं ते प्रमाणे यावत् 'रुक्षपुद्गलोने स्निग्धपुद्गलोपणे परिणमाववा समर्थ छे? हा, समर्थ छे; हे भगबनू ! शुं अहीं रहेला पुद्गलोने ग्रहण करी, यावत् अन्यत्र रहेला पुदगलोने ग्रहण कर्या शिवाय विकुर्वे छे'त्यांसुधी जाणवू. ॥ २९८ ॥
_ णायमेयं अरहया सुयमेयं अरहया विन्नायमेयं अरहया महासिलाकंटए संगामे २॥ महासिलाकंटए णं 8 भंते ! संगामे वट्टमाणे के जइत्था के पराजइत्था ?, गोयमा! बज्जी विदेहपुत्ते जइत्था, नवमल्लई नवलेच्छई
कासीकोमसगा अट्ठारसवि गणरायाणो पराजइत्था ॥ तए णं से कोणिए राया महासिलाकंटकं संगामं | उवट्ठियं जाणित्ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ २ एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! उदाई हत्थिरायं, पडिकप्पेह हयगयरहजोहकलियं चाउरंगिणिं सेणं सन्नाहेह २त्ता मम एयमाणत्तियं खिप्पामेव पचप्पिणह । तए णं ते कोटुंबियपुरिसा कोणिएणं रन्ना एवं बुत्ता समाणा हट्टतुट्ट जाव अंजलिं कहु एवं सामी! तहत्ति आणाए बिणएणं वयणं पडिसुणंति २ खिप्पामेव छेयायरियोवएसमतिकप्पणाविकप्पेहिं सुनिउणेहिं एवं जहा उववाइए जाव भीमं संगामियं अउज्झं उदाई हस्थिरायं पडिकति हयगय जाव सन्नाति २ जेणेव कूणिए | राया तेणेव उवागच्छह, तेणेव उवागच्छइत्ता करयल• कूणियस्स रन्नो तमाणत्तियं पञ्चप्पिणंति, तए णं से कूणिए राया जेणेव मजणघरे तेणेव उवागच्छ। तेणेव उवागच्छित्ता मजणघरं अणुपविसह मजणघरं अणु
***HARHARS
4-%
X
For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248