Book Title: Bhagvati Sutram Part 02
Author(s): Sudharmaswami, 
Publisher: Hiralal Hansraj

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Page 210
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir * ७ शतके व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥५३२॥ उद्देशः ७ ॥५३२॥ कंका विलका मदुगा सिही निस्सीला तहेव जाव ओसन्नं नरगतिरिक्खजोणिएसु उववजिहिंति । सेवं भंते ! | सेवं भंते ! त्ति (सूत्रं २८७)॥ सत्तमस्स सयस्स छट्टो उद्देसओ सम्मत्तो ।। ७-६ ॥ [प्र०] हे भगवन् ! शीलरहित, निर्गुण, मर्यादारहित, प्रत्याख्यान अने पोषधोपवासरहित, प्रायः मांसाहारी, मत्स्याहारी, मधनो आहार करनारा, मृत शरीरनो आहार करनारा ते मनुष्यो मरण समये काल करीने क्यां जशे ? [उ.] हे गौतम! प्रायः नारक अने तिर्यच योनिमा उत्पन्न थशे. [प्र०] हे भगवन् ! ते सिंहो, वाघो, वृको, दीपडाओ, रिंछो, तरक्षो, शरभो ते प्रमाणे निःशील एवा यावत् क्या उत्पन्न थशे ? [उ०] हे गौतम ! प्रायः नारक अने तियंचयोनिमां उत्पन्न थशे. [प्र०] हे भगवन् ! ते कागडाओ, कंको, विलको, जलवायसो, मयूरो, निःशील एवा ते प्रमाणे यावत् (क्यां उत्पन्न थशे) [उ०] प्रायः नारक अने तिर्यंच योनिमां उत्पन्न थशे. हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे. हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे के एम कही यावत् विचरे छे. ॥ २८७ ॥ भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीसूत्रना सातमा शतकमा छट्ठा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो. SHAHR NeckUR उद्देशक ७. संवुडस्स णं भंते ! अणगारस्म आउत्तं गच्छमाणस्स जाव आउत्तं तुयट्टमाणस्स आउत्तं वत्थं पडिग्गहं कंबलं पायपुंछणं गेण्हमाणस्स वा निक्खिवमाणस्स वा तस्स णं भंते ! किं ईरियावहिया किरिया कजइ संपराइया किरिया कन्जइ ?, गोयमा ! संवुडस्स णं अणगारस्स जाव तस्स णं ईरियावहिया किरिया कज्जा, For Private and Personal Use Only

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