Book Title: Bhagvati Sutram Part 02
Author(s): Sudharmaswami, 
Publisher: Hiralal Hansraj

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Page 215
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir IU उद्देशः७ भुंजमाणे विहरित्तए ?, से नूर्ण भंते ! एयमटुं एवं वयह, गोयमा ! णो इणटे समढे, पभू णं उट्टाणेणवि व्याख्याकम्मेणवि बलेणवि वीरितणवि पुरिसक्कारपरक्कमेणवि अन्नयराई विउलाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरित्तए, 3७ शतके प्रज्ञप्तिः तम्हा भोगी भोगे परिचयमाणे महानिजरे महापज्जवसाणे भवइ १। आहोहिए णं भंते ! मणुस्से जे भविए ॥५३७॥ क्षन्नयरेसु देवलोएसु एवं चेव जहा छउमत्थे जाव महापज्जवसाणे भवति २। परमाहोहिए णं भंते ! मणुस्से * ५३७॥ जे भविए तेणेव भवग्गहणेणं सिज्झित्तए जाव अंतं करेत्तए ?, से नूणं भंते ! से खीणभोगी सेसं जहा छउ४ मत्थस्सवि३ । केवली ण भते ! मगुस्से जे भविए तेणेव भवग्गहणेणं एवं जहा परमाहोहिए जाव महापजदवसाणे भवइ ४ ॥ (सूत्रं २९०)॥ [प्र०] हे भगवन् ! छमस्थ मनुष्य जे कोइपण देवलोकमां देवपणे उत्पन्न यवाने योग्य छे ते क्षीगभोगी-दुर्बल शरीरवाळो ५ उत्थानवडे, कर्मवडे, बलवडे, वीर्यवडे अने पुरुषाकार पराक्रमवडे विपुल एवा भोग्य भोगोने भोगववा समर्थ छे ? हे भगवन् ! खरेदाखर आ अर्थने आ प्रमाणे कहो छो? [उ.] हे गौतम ! आ अर्थ योग्य नथी. ते उत्थानवडे पण, कमाडे पण, बलबडे पण, वीर्यवडे पण अने पुरुषाकार पराक्रमवडे पण कोइपण विपुल एवा भोग्य भोगोने भोगवा समर्थ हे, ते माटे ते भोगी भोगोनो त्याग करतो | महानिर्जरावाळो अने महापर्यवसान-महाफलवाळो थाय छे. [प्र०] हे भगवन् ! ! अबोऽवधिक-नियतक्षेत्रना अवधिज्ञानवाहोमनुष्य जे कोइपण देवलोकमां देवपणे उत्पन्न थवाने योग्य छे ते क्षीणभोगी पुरुषाकार पराक्रमबडे विपुल भोगोने भोगवत्रा समर्थ हे ? [उ.] ए प्रमाणे छद्मस्थनी पेठे यावत् ते महापर्यवसान-महाफलवाळो थाय रे. [प्र०] हे भगतन् ! परमावधिज्ञानी मनुष्य RRC-Rarathi For Private and Personal Use Only

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