Book Title: Bhagvati Sutram Part 02
Author(s): Sudharmaswami, 
Publisher: Hiralal Hansraj

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Page 218
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥५४॥ नथी, अने जे देवलोकमां रहेला रूपोने जोवा समर्थ नथी हे गौतम ! ते समर्थ छतां पण तीवेच्छापूर्वक वेदनाने वेदे. हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे, हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे, एम कही यावत् विचरे छे. ॥ २९१ ॥ भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीसूत्रना सातमा शतकमा सातमा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो. BHASAB ७ शतके उद्देशः ८ ॥५४॥ % उद्देशक ८. छउमत्थे णं भंते ! मणूसे तीयमणंतं सासयं समय केवलेणं संजमेणं एवं जहा पढमसए चउत्थे उद्देमए तहा भाणियव्वं जाव अलमत्थु ।। (सूत्र २९२)॥ [प्र.] हे भगवन् ! छमस्थ मनुष्य अनंत अने शाश्वत अतीत काले केवळ संयमवडे (यावत् सिद्ध थयो ? [उ०] ए प्रमाणे जेम प्रथम शतकना चोथा उद्देशकमां का छे तेम यावत् 'अलमस्तु' पाठ सुधी कहेवु. ॥ २९२ ॥ से णूणं भंते ! हथिस्स ये कुंथुस्स य समे नेव जीवे ?, हंता गोयमा ! हथिस्स कुंथुस्स य, एवं जहा रायप्पसेणहजे जाव खुडियं वा महालिय वा से तेणटेणं गोयमा ! जाव समे चेव जीवे ( सूत्रं २९३)॥ [प्र०] हे भगवन् ! खरेखर हस्ती अने कुंथुनो जीव समान छे ? [उ.] हा, गौतम ! हस्ती अने कुंथुनो जीव समान छे. जेम | 'रायपसेणीय' सूत्रमा कयु छे ते प्रमाणे यावत् 'खुड्डियं वा महालियं वा' ए पाठ सुधी जाणवू. ॥ २९३ ।। % % % * For Private and Personal use only

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