Book Title: Bhagvati Sutram Part 02
Author(s): Sudharmaswami,
Publisher: Hiralal Hansraj
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व्याख्या
प्रज्ञप्तिः ॥ ५३८ ॥
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जे तेज भवमां सिद्ध थवाने यावत् ( सर्व दुःखोनो ) अन्त करवाने योग्य छे, हे भगवन् ! खरेखर ते क्षीणभोगी विपुल भोगोने भोगवचा समर्थ छे ? [उ०] बाकी तुं सर्व छद्मस्थनी पेठे जाणवु [प्र० ] केवलज्ञानी मनुष्य जे तेज भवमां सिद्ध थवाने यावत् (दुःखोनो) अन्त करवाने योग्य छे ते विपुल भोगोने भोगवचा समर्थ छे ? [३०] परमावधिज्ञानी पेठे जाणं, यावत् ते महापर्यवसान महाफलवाळो थाय छे. ॥ २९० ॥
जे इमे भंते ! असन्निणो पाणा, तंजहा पुढविकाइया जाव वणस्सइकाइया छट्ठा य एगतिया तसा, एए णं अंधा मूढा तमंपविट्ठा तमपडलमोहजालपडिच्छण्णा अकामनिकरणं वेदणं वेदंतीति वत्तव्वं सिया ?, हंता गोयमा ! जे इमे असन्निणो पाणा जाव पुढविकाइया जाव वणस्सइकाइया छट्टा य जाव वेदणं वेदंतीति वत्तव्वं सिया || अस्थि णं भंते! पभूवि अकामनिकरणं वेदणं वेदंति ?, हंता गोयमा ! अस्थि कहनं भंते ! पभूवि अकामनिकरणं वेदणं वेदेति १, गोयमा ! जे णं णो पभू विणा दीवेणं अंधकारंसि रुवाई पासित्तए, जे णं नो पभू पुरओ रूवाएं अणिज्झाइत्ताणं पासित्तए, जे णं नो पभू मग्गओ रूवाएं अणवयक्खित्ताणं पासित्तए, जेणं नो पभू पासओ रुवाई अणालोइत्ता णं पासित्तए, जेणं नो पभू उडूढं रुवाई अणालोएत्ताणं पासित्तए, जे णं नो पभू अहे रुवाइं अणालोयएत्ता णं पासित्तए, एस णं गोयमा ! पभूवि अकामनिकरणं वेदणं वेदेति । अस्थि णं भंते! पभूवि पकामनिकरणं वेदणं वेदेति ?, हंता अत्थि कहन्नं भंते ! पभूवि पकामनिकरणं वेदणं वेदंति ?, गोयमा ! जे णं नो पभू समुहस्स पारं गमित्तए, जे णं नो पभू समु
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७ शतके उद्देशः ७ ॥ ५३८ ॥

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