Book Title: Bhagvati Sutram Part 02
Author(s): Sudharmaswami,
Publisher: Hiralal Hansraj
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व्याख्याप्रज्ञप्तिः
७ शतके उद्देशः७
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॥५३३॥
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णो संपराइया किरिया कन्जइत्ति । से केणटेणं भंते ! एवं वुचइ-संवुडस्स णं जाव संपराइगा किरिया कजड़ , गोयमा! जस्म णं कोहमाणमायालोभा वोच्छिन्ना भवंति तस्म णं ईरियावहिया किरिया कज्जइ, तहेब जाव उस्सुत्तरीयमाणस्स संपराइया किरिया कजइ, से णं अहासुत्तमेव रीयइ, से तेणटेणं गोयमा ! जाव नो संपराईया किरिया कजह ।। (सूत्रं २८८)॥
[प्र०] हे भगवन् ! उपयोग ( सावधानता) पूर्वक गमन करता, यावत् उपयोगपूर्वक मूता-आलोटता के उपयोगपूर्वक वस्त्र, पात्र, कंबल अने पादप्रांछनक (रजोहरण) ने ग्रहण करता अने मृकता संवृत-संवरयुक्त साधुने शु एकपथिकी क्रिया लागे के सांपरायिकी क्रिया लागे? [उ.] हे गौतम ! संवरयुक्त यावत् ते अनगारने एर्यापथिकी क्रिया लागे, सांपरायिकी क्रिया न लागे. [प्र.] हे भगवन् ! एम शा हेतुथी कहो छो के संवरयुक्त साधुने यावत् सांप गयिकी क्रिया न लागे? [उ.] हे गौतम ! जेना क्रोध, मान, माया अने लोभ नष्ट थया होय तेने ऐर्यापथिकी क्रिया लागे, तेमज यावत् सूत्रविरुद्ध चलनारने सांपरायिकी क्रियालागे; ते संवरयुक्त अनगार मूत्र प्रमाणे वर्ते छे, ते हेतुथी हे गौतम : तेने यावत् सांपरायिकी क्रिया न लागे. ॥२८८॥
रूवीभते. कामा अरूबी कामा?. गोयमा रूवी कामा समणाउसो,नो अरूवी कामा। सचित्ता भते! कामा अचित्ता कामा?, गोयमा सचित्तावि कामा, अचित्तावि कामा । जीवा भंते कामा अजीवा कामा?, गोयमा! जीवावि कामा,अजीवावि कामा । जीवाणं भंते! कामा अजीवाणं कामा?,गोयमा जीवाणं कामा, नो अजीवाणं कामा, कति विहा णं भंते ! कामा पन्नत्ता ?, गोयमा ! दुविहा कामा पन्नत्ता, तंजहा-सहा य रूया य । रूवी
-2424ter
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