Book Title: Bhagvati Sutram Part 02
Author(s): Sudharmaswami, 
Publisher: Hiralal Hansraj

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Page 208
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobarth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandit ७ शतके व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥५३॥ उद्देशः ६ ॥५३०॥ बेडोळ रूपवाळा, जेना नख, केश, डाढी, मृछ अने रोम वधेला छे एवा,काळा, अत्यंत कठोर,श्यामवर्णवाळा, छूटा केशवाळा,धोला केशवाळा, बहु स्नायुथी बांधेल होवाने लीधे दुर्दर्शनीय रूपवाळा, जेओना प्रत्येक अंग बांका अने वलीतरंगोथी-करचलीओथी व्याप्त | छ एवा, जरापरिणत (वृद्धावस्थायुक्त) वृद्धपुरुष जेवा, छुटा अने सडी गयेला दांतनी श्रेणिवाळा, घटना जेवा भयंकर मुखवाळा भयंकर छे घाटा (डोकनी पाछळनो भाग) अने मुख जेओना एवा विषम नेत्रवाळा, वांकी नासिकावाळा, वांका अने बलिओथी विकृत थयेला, भयंकर मुखवाळा, खस अने खरजथी व्याप्त, कठण अने तीक्ष्ण नखोबडे खजवाळवाथी विकृत थयेला, दद्रु (दराज)| | किडिभ (एक जातनो कोढ) अने सिध्म (कुष्ठ विशेष, करोळीआ) वाळा, फाटी गयेल अने कठोर चामडीवाळा, विचित्रअंगवाळा, उष्ट्रादिना जेवी गतिवाळा, (खराब आकृतिवाळा) सांधाना विषम बंधनवाळा, योग्यस्थाने नहि गोठवायेला छूटा देखाता हाडकावाळा, दवेल, खरावसंघयणवाळा, खराब प्रमाणवाळा, खराब संस्थानवाळा, खराब रूपवाजा, खराब स्थान अने आसनवाळा, खराब शय्यावाळा, खराव भोजनवाळा, जेओनां प्रत्येक अंग अनेक व्याधिओथी पीडित छे एवा, स्खलनायुक्त विडलगतिवाळा, उत्साहरहित सवरहित, विकृतचेष्टाबाळा, तेजरहित, वारंवार शीत, उष्ण तीक्ष्ण अने कठोर पवनवडे व्याप्त, जेओना अंग, धूळवडे मलिन अने रजवडे व्याप्त छे एवा, बहु क्रोध, मान अने मायावाळा, बहु लोभवाळा, अशुभ दुःखना भागी, प्रायः धर्मसंज्ञा अने सम्यक्त्वधी भ्रष्ट, उत्कृष्ट एक हाथ प्रमाण शरीरवाळा, सोळ अने वीश वरसना परम आयुषवाळा, पुत्र पौत्रादि परिवारमा अत्यंत स्नेहवाळा (घणा पुत्रपौत्रादिनुं पालन करनारा) बीजना जेवा, बीजमात्र एवा (मनुष्योना) बहोंतर कुटुंबो गंगा, सिन्धु महानदीओ अने वैतात्य पर्वतनो आश्रय करीने विलमा रहेनारा थशे. ॐॐॐॐॐ For Private and Personal Use Only

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