Book Title: Bhagvati Sutram Part 02
Author(s): Sudharmaswami,
Publisher: Hiralal Hansraj
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व्याख्याप्रज्ञप्तिः
॥५२४ ॥
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पाणिवाळा, विजळी युक्त अशनिमेघ-करा वगेरेने पाडनार (पर्वतने भेदनारा) विषमेघो-झेरी पाणिवाळा- नहि पीवालायक पाणिवाळा, (निर्वाह न थइ शके तेवा पाणिवाळा) व्याधि, रोग अने वेदना उत्पन्न करनार पाणिवाळा, मनने न रुचे तेवा पाणिवाळा मेघो तीक्ष्ण धाराना पडवा ढेव पुष्कळ वरसशे, जेथी भारत वर्षमां ग्राम, आकर, नगर, खेट, कर्बट, मडंव, द्रोणमुख, पडून अने आश्रममा रहे मनुष्यो, चोपगा-गायो घेटा अने आकाशमां गमन करता पक्षिओना टोळाओ; तेमज गाम अने अरण्यमां चालता त्रस जीवो तथा बहु प्रकारना वृक्षो, गुल्मो, लताओ, वेलडीओ, घास, पर्वगो-शेरडी वगेरे, घरो वगेरे, ओषधी-शालि वगेरे, प्रवालो अने अंकुरादि तृणवनस्पतिओ नाश पामशे वैताढ्य शिवाय पर्वतो, गिरिओ डुंगरो, धूळना उंचा स्थलो, रज विनानी भूमिओ नाश पामशे. गंगा अने सिन्धु नदी सिवाय पाणीना झराओ, खाडाओ, दुर्गम अने विषम भूमिमां रहेला उंचा अने नीचा स्थलो सरखा थशे. [प्र० ] हे भगवन् ! ( ते काले ) भारतवर्षनी भूमिनो केवो आकारभावप्रत्यवतार थशे ? [उ०] हे गौतम ! ते काळे अंगार जेवी, मुर्मुर- छाणानां अनि जेबी, भस्मीभूत तपी गयेला कटाह ( कटाया ) जेवी, तापवडे अग्निना सरखी, बहुधूळवाळी बहु रजवाळी, बहु कीचडत्राळी, बहु सेवाळवाळी, घणा कादववाळी, अने पृथ्वी उपर रहेला घणा प्राणिओने चाळवं मुश्केल पडे एवी भूमि धशे ॥ २४६ ॥
तीसे णं भंते! समाए भारहे वासे मणुयाणं केरिसए आगारभावपडोयारे भविस्सति ?, गोयमा ! मणुया भविस्संति दुरूवा दुवन्ना दुगंधा दुरसा दुफासा अणिट्ठा अकंता जाव अमणामा हीणस्सरा दीणस्सरा अणिट्ठस्सरा जाव अमणामस्सरा अणादेज्जवयणपच्चायाया निल्लज्जा कूडकवडकलहवबंधवेरनिरया मज्जा
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७ शतके उद्देशः ६ ।। ५२८ ।।

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