Book Title: Bhagvati Sutram Part 02
Author(s): Sudharmaswami,
Publisher: Hiralal Hansraj
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व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥५२६॥
७ शतके उद्देशः ६ ॥५२६॥
सातावेदनीय कर्म केम बंधाय ? [उ०] हे गौतम! प्राणोने विषे अनुकंपाथी, भूतोने विषे अनुकंपाथी, जीवोने विषे अनुकंपाथी, 2 सत्त्वोने विषे अनुकंपाथी, घणा प्राणोने यावत् सच्चोने दुःख न देवाथी, शोक नहि उपजाववाथी, खेद नहि उत्पन्न करवाथी, वेदना न करवाथी, नहि मारवाथी तेम परिताप नहि उपजाववाथी. ए प्रमाणे हे गौतम! जीवो सातावेदनीय कर्मो बांधे छे. ए प्रमाणे नारकोने पण जाणवू; यावत् वैमानिकोने जाणवू. [प्र०] हे भगवन् ! शुं एम छे के जीवोने असातावेदनीय कर्मो बंधाय ? [उ०] हा, गौतम ! एम छे. [प्र०] हे भगवन् ! जीवोने असातावेदनीय कर्म केम बंधाय ? [उ०] हे गौतम ! वीजाने दुःख देवाथी, वीजाने शोक उपजाववाथी, बीजाने खेद उत्पन्न करवाथी, बीजाने पीडा करवाथी, बीजाने मारवाथी, बीजाने परिताप उत्पन्न करवाथी, तेम घणां प्राणोने यावत् सत्वोने दुःख देवाथी, शोक उपजाववाथी, यावत् परिताप उत्पन्न करवाथी, ए प्रमाणे हे गौतम ! जीवोने असातावेदनीय कर्म बंधाय छे. ए प्रमाणे नारकोने, यावत् वैमानिकोने जाणवू. ॥ २८५ ।।
जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे भारहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए दूसमदूसमाए समाए उत्तमकट्ठपत्ताए भरहस्स वासस्स केरिसए आगारभावपडोयारे भविस्सति ?, गोयमा! कालो भविस्सइ हाहाभूए भंभाभूए कोलाहलन्भूए, समयाणुभावेण य णं खरफरुसधूलिमहला दुब्विसहा वाउला भयंकरा वाया संवगा य वाइंति, इह अभिक्खं धूमाईति य दिसा समंता रउस्सला रेणुकलुसतमपडलनिरालोगा समयलुक्खयाए य णं अहियं चंदा सीयं मोच्छति अहियं सूरिया तवइस्संति अदुत्तरं च णं अभिक्खणं वहवे अरसमेहा विरसमेहा खारमेहा खट्टमेहा | अग्गिमेहा विज्जुमेहा विसमेहा असणिमेहा अपियणिज्जोदगा वाहिरोगवेदणोदीरणापरिणामसलिला अमणुन्न
25ASEASY
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