Book Title: Bhagvati Sutram Part 02
Author(s): Sudharmaswami,
Publisher: Hiralal Hansraj
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व्याख्याः प्रज्ञप्ति ॥५२७॥
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पाणियगा चंडानिलपहयतिक्खधारानिवायपउवासं वासिहिंति। जेणं भारहे वासे गामागरनगरखेडकब्बडमडंबदोणमुहपट्टणासमागयं जणवयं चउप्पयगवेलगए खयरे य पक्खिसंघेगामारनपयारनिरए तसे य पाणे बहुप्प
४७ शतके गारेरुत्वगुच्छगुम्मलयवल्लितणपब्वगहरितोसहिपवालंकुरमादीए य तणवणस्सइकाइए विद्धंसेहिंति पव्वयगिरि
| उद्देशः६ डोंगरउच्छलभट्टिमादीए वेयड्ढगिरिवजे विरावेहिंति सलिलबिलगदुग्गविमम निण्णुन्नयाई च गंगासिंधुवज्जाई
k५२७॥ समीकरेहिनि। तीसे भंते! समाए भरहवासस्स भूमीए केरिसए आगारभावपडोयारे भविस्सति?, गोयमा! भूमी भविस्मति इगालब्भूया मुम्मुरभूया छारियभूया तत्तकवेल्लयभूया तत्तसमजोतिभूया धृलिबहुला रेणुबहुला पंकबहुला पणगबहुला चलणिबहुला बहणं धरणिगोयराणं मत्ताण दोनिक्कमा य भविस्मति। (सूत्रं २८६)
[प्र०] हे भगवन् ! जंबूदीप नामे द्वीपमा भारतवर्षने विषे आ अवसर्पिणीमां दुषमादुःषमा काल छट्ठो आरो ज्यारे अत्यंत उत्कट अवस्थाने प्राप्त थशे त्यारे भारतवर्षनो आकारभावप्रत्यवतार (आकार अने भावोनो आविर्भाव ) केवा प्रकारे थशे ? [उ०]] हे गौतम ! हाहाभूत (जे काळे दुःखी लोको 'हा हा' शब्द करशे) भंभाभूत (जे काळे दुःखात पशुओ 'भां भां' शब्द करशे) अने कोलाहलभूत (ज्यारे दुःखपीडीत पक्षीओ कोलाहल करशे) एवो काल थशे. कालना प्रभावथी घणा कठोर, धृळथी मेला, असह्य, अनुचित अने भयंकर वायु, तेमज संवर्तक वायु वाशे. आ काळे वारंवार चारे बाजूए धूळ उडती होवाथी रजथी मलिन अने अंधकारवडे प्रकाशरहित दिशाओ धूमाडा जेवी झांखी देखाशे. कालनी रुक्षताथी चन्द्रो अधिक शीतता आपशे अने सूर्यो अत्यंत तपशे. बळी वारंवार घणा खराब रसवाळा, विरुद्ध रसवाळा खारा, खातरसमान पाणिवाळा, (खाटा पाणिवाळा) अननी पेठे दाहक
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