Book Title: Bhagvati Sutram Part 02
Author(s): Sudharmaswami, 
Publisher: Hiralal Hansraj

View full book text
Previous | Next

Page 185
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥५०७ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अने वैमानिक देवो जेम नारको कला तेम जाणवा. [प्र० ] हे भगवन् ! मूलगुणप्रत्याख्यानी, उत्तरगुणप्रत्याख्यानी, उत्तरगुणप्रत्याख्यानी अने अप्रत्याख्यानी जीवोमां कोण कोनाथी यावत् विशेषाधिक छे ? [अ०] हे गौतम! मूलगुणप्रत्याख्यानी जीवो सौथी थोडा छे, उत्तरगुणप्रत्याख्यानी असंख्यगुण छे, अने अप्रत्याख्यानी अनंतगुण छे. एएसि णं भंते! पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा, गोयमा! सव्वत्थोवा जीवा पंचेंदियतिरिक्खजोणिया मूलगुण पञ्चक्खाणी, उत्तरगुणपञ्चक्खाणी असंखेज्जगुणा, अपचक्खाणी असंखिज्जगुणा । एएसि णं भंते! मणुस्सार्ण मूलगुणपञ्चक्खाणीणं० पुच्छा, गोयमाः सव्वत्थोवा मणुस्सा मूलगुणपञ्चकखाणी, उत्तरगुणपञ्चवाणी संखेज्जगुणा, अपच्चक्खाणी असंखेज्जगुणा । जीवा णं भंते ! किं सव्वमूलगुणपचक्खाणी देसमूलगुणपच्चक्खाखी अपञ्चकखाणी?, गोयमा ! जीवा सच्चमूलगुणपञ्चक्खाणी देसमूलगुणपञ्चक्खाणी अपचक्खाणीवि । नेरइयाणं पुच्छा, गोयमा ! नेरइया नो सव्वमूलगुणपच्चक्खाणी, नो देममूलगुणपञ्चक्खाणी, अपञ्चक्खाणी, एवं जाव चउरिंदिया । पंचिंदियतिरिक्खपुच्छा, गोयमा ! पंचिंदियतिरिक्ख० नो सब्वमूलगुणपच्चक्खाणी, देसमूलगुणपच्चक्खाणी अपञ्चखाणीवि, मणुस्सा जहा जीवा, वाणमंतरजोइसवेमाणिया जहा नेरइया । [प्र० ] हे भगवन् ! ए (पूर्वे कला) जीवोमां पंचेन्द्रिय तिर्यंच जीवोनो प्रश्न. [उ०] हे गौतम! मूलगुणप्रत्याख्यानी पंचेन्द्रिय तिर्यंच जीवो सर्वथी थोडा छे, उत्तरगुणप्रत्याख्यानी असंख्यगुण हे, अने अप्रत्याख्यानी असंख्यगुण छे. [प्र० ] हे भगवन् ! ए | जीवोमां मूलगुअप्रत्याख्यानी वगेरे मनुष्योनो प्रश्न. [उ० ] हे गौतम ! मूलगुणप्रत्याख्यानी मनुष्यो सर्वयी थोडा हे, उत्तरगुणम For Private and Personal Use Only ७ शतके उद्देशः २ ॥ ५०७॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248