Book Title: Bhagvati Sutram Part 02
Author(s): Sudharmaswami, 
Publisher: Hiralal Hansraj

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Page 201
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्ति ॥५२३॥ Heac ७ शतके उद्देशः६ ॥५२३॥ वेदणे उववज्जमाणे सिय महावेदणे सिय अप्पवेदणे, अहे णं उववन्ने भवइ तओ पच्छा एगंतसायं वेधणं वेदेति, आहच असायं, एवं जाव धणियकुमारेसु। जीवे णं भंते ! जे भविए पुढविकाइएसु उववजित्तए पुच्छा, गोयमा! इहगए सिय महावेयणे सिय अप्पवेयणे, एवं उववजमाणेवि, अहे णं उववन्ने भवति तओ पच्छा बेमायाए वेयणं | वेयति एवं जाव मणुस्सेसु, वाणमंतरजोइसियवेमाणिएसु जहा असुरकुमारेसु ॥ (सूत्रं २८२)॥ [प्र०] हे भगवन् ! जे जीव असुरकुमारमा उत्पन्न थवाने योग्य छे ते संबन्धी प्रश्न. [उ.] हे गौतम! ते कदाच आ भवमा रहेलो महावेदनावाळो होय के कदाच अल्पवेदनावाळो होय; उत्पन्न थता कदाच महावेदनावाळो होय के कदाच अल्पवेदनावाळो होय; पण ज्यारे ते उत्पन्न थाय छे त्यारपछी एकान्त सुखरूप वेदनाने वेदे छे, अने कदाच दुःखने वेदे छे. ए प्रमाणे यावत् स्तनितकुमारने विषे जाणवं. [प्र०] हे भगवन् ! जे जीव पृथिवीकायमा उत्पन्न थवाने योग्य छे ते संबन्धी प्रश्न. [उ०] हे गौतम ! आ भवमा रहेलो ते कदाच महावेदनाको होय के कदाच अल्पवेदनावाळो होय; ए प्रमाणे उत्पन्न थतां पण पहावेदनावालो होय के | अल्पवेदनावालो होय, पण ज्यारे ते उत्पन्न थाय छे त्यारपछी ते विविध प्रकारे वेदनाने वेदे छ. ए प्रमाणे यावत मनुष्योमा जाण. | जेम असुरकुमारोने विषे (मृ. ४) कछु तेम वानव्यंतर, ज्योतिष्क अने वैमानिक देवो विपे जाणवू. ॥ २८२ ।। जीवा णं भंते ! किं आभोगनिव्वत्तियाउया अणाभोगनिव्वत्तियाउया ?, गोयमा ! नो आभोगनिव्वत्ति| याउया अणाभोगनिव्वत्तियाउया, एवं नेरइयावि, एवं जाव वेमाणिया ।। ( सूत्रं २८३)॥ [प्र०] हे भगवन् ! शु जीवो आभोगवी-जाणपणे आयुषनो बंध करे के अनाभोगथी-अजाणपणे आयुपनो बंध करे ? [उ०] t ition For Private and Personal Use Only

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