Book Title: Bhagvati Sutram Part 02
Author(s): Sudharmaswami, 
Publisher: Hiralal Hansraj

View full book text
Previous | Next

Page 199
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥५२१॥ www.kobatirth.org सूत्रमां कहूं छे ते प्रमाणे यावत् 'ते विमानोने उल्लंघी न शके एटला मोटा ते विमानो कथा छे' त्यांसुधी सर्व जाणं. (१ योनिसंग्रह, २ लेश्या; ३ दृष्टि सम्यक् मिश्र अने मिध्यात्वदृष्टि, ४ ज्ञान, ५ योग, ६ उपयोग, ७ उपपात उत्पन्न थवु, ८ स्थिति - आयुष, ९ समुद्घात, १० च्यवन, ११ जातिकुलकोटी. हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे, हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे, एम कही गौतम यावत् विचरे छे. ॥ २८९ ॥ भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीसूत्रना सातमा शतकमां पांचमा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो. 4 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उद्देशक ६. रायगिहे जाव एवं वदासी-जीवे णं भंते ! जे भविए नेरइएस उववज्जित्तए से णं भंते! किं इहगए नेरइयाउयं पकरेति उववज्ज़माणे नेरइयाउयं पकरेह उवबन्ने नेरइयाउयं पकरेइ ?, गोयमा ! इहगए नेरइयाज्यं पकरेह, नो उववज्जमाणे नेरइयाउयं पकरेह, नो उवबन्ने नेरइयाउयं पकरेइ, एवं असुरकुमारेसुवि एवं जाव वेमाणिएसु । जीवे णं भंते ! जे भविए नेरइएसु उववज्जित्तए से णं भंते! किं इहगए नेरइयाउयं पडिसंवेदेति उववज्रमाणे नेरहयाउयं पडिसंवेदेति उबवन्ने नेरइयाउयं पडिसंवेदेति ?, गोयमा ! णेरइए णो इहगए नेरइयाउयं पडिसंवेदेह उबवज्रमाणे नेरइयाउयं पडिसंवेदेइ, उववन्नेवि नेरइयाउंय पडिसेवदेति, एवं जाव वैमाणिएसु । जीवे णं भंते ! जे भविए नेरइएस उववजित्तए से णं भंते! किं इहगए महावेदणे उववज्ज्रमाणे महावेदणे उबवण्णे For Private and Personal Use Only ७ शतके उद्देशः ६ ॥५२१॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248