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व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥५१८॥
७ शतके उद्देशः३ ॥५१८॥
हे भगवन् ! एम शा हेतुथी कहो छो के यावत् तेने वेदशे नहि ? [उ.] हे गौतम ! कर्मने वेदशे अने नोकर्मने निर्जरशे, ते हेतुथी | यावत् जेने (वेदशे) तेने निर्जरशे नहि. [प्र०) हे भगवन् ! शुंजे वेदनानो समय छे ते निर्जरानो समय छे, अने जे निजरानो समय | छे ते वेदनानो समय छे ? [उ०] हे गौतम! ए अर्थ योग्य नथी. [प्र०] हे भगवन् ! शा हेतुथी एम कहेवाय छे के जे वेदनानो |समय छे ते निर्जरानो समय नथी, अने जे निर्जरानो समय छे ते वेदनानो समय नथी? [उ.] हे गौतम ! जे समये वेदे के ते | समये निर्जरा करतो नथी, जे समये निर्जरा करे के ते समये वेदतो नथी, अन्य समये वेदे छे, अन्य समये निर्जरा करे छे, वेदनानो समय मित्र के अने निर्जरानो समय भिन्न छे ते हेतुथी यावत् वेदनानो समय छे ते निर्जरानो समय नथी. [प्र०] हे भगवन् ! शुं नारकोने जे वेदनानो समय छे, ते निर्जरानो समय छे, अने निर्जरानो समय छे ते वेदनानो समय छे ? [उ०] हे गौतम ! ए अर्थ योग्य नथी. [प्र०] हे भगवन् ! एम शा कारणथी कहो छो के नारकोने जे वेदनानो समय के ते निर्जरानो समय नथी, अने जे निर्जरानो समय छे ते वेदनानो समय नथी? [उ०] हे गौतम! नारको जे समये वेदे के ते समये निर्जरा करता नथी, अने जे समये निर्जरा करे छे ते समये वेदता नथी, अन्य समये वेदे छे अने अन्य समये निर्जरा करे के, तेओनो वेदनानो समय जूदो छ, अने निर्जरांनो समय जूदो के ते हेतुथी यावत् निर्जरानो समय ते वेदनानो समय नथी. ए प्रमाणे यावत् वैमानिकोने जाणवू. ॥२७८॥ | नेरइया ण भंते ! किं सासया असासया ?, गोयमा ! सिय सासया सिय असासया, से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चए नेरइया सिय सासया सिय असासया ?, गोयमा! अब्बोच्छित्तिणयट्ठयाए सासया वोच्छित्तिणयह याए असासया, से तेणट्टेणं जाव सिय सासया सिय असासया, एवं जाव वेमाणिया जाव सिय असा
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