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७ शतके उद्देशः ३ ॥५१६॥
नेरइयावि एवं जाव वेमाणिया । से नूणं भंते ! जे वेदेति तं निज़रति जं निजरिंति तं वेदेति ?, गोयमा! व्याख्या- दाणो तिणटे समढे, से केणढणं भंते ! एवं बुच्चइ जाव नो तं वेदेति ?, गोयमा ! कम्मं वेदेति नोकम्मं निज़रति, प्रज्ञप्तिः से तेणटेणं गोयमा ! जाव नो तं वेदेति, एवं नेरइयावि जाव वेमाणिया। ॥५१६॥ । [प्र.] हे भगवन् ! खरेखर जे वेदना ते निर्जरा, अने जे निर्जरा ते वेदना कहेबाय ? [उ.] हे गौतम ! ए अर्थ योग्य नथी.
प्र०] हे भगवन् ! एम शा हेतुथी कहो छो के-जे वेदना ते निर्जरा ओ जे निर्जरा ते वेदना न कहेवाय ? [उ.] हे गौतम ! वेदना & कर्म छे, अने निर्जरा नोकर्म छे, ते हेतुथी यावत् ते वेदना न कहेवाय. [प्र०] हे भगवन् ! शुं नारकोने जे वेदना छे ते निर्जरा
कहेवाय, अने जे निर्जरा छे ते वेदना कहेवाय ? [उ.] हे गौतम! ए अर्थ योग्य नथी. [प्र०] हे भगवन् ! एम शा हेतुथी कहो ४. छो के नारकोने जे वेदना ते निर्जरा न कहेवाय ? [उ.] हे गौतम ! नारकोने वेदना छे ते कर्म छे, अने निर्जरा छे ते नो कर्म दछे, ते हेतुथी एम कहुं छु के हे गौतम ! यावत् निर्जरा ते वेदना न कहेवाय. ए प्रमाणे यावत् वैमानिको जाणवा. [40] हे
भगवन् ! शुं खरेखर जे वेद्युते निर्जयु, अने जे निर्जयु ते वेधु? [उ०] हे गौतम ! ए अर्थ योग्य नथी [प्र०] हे भगवन् ! एम शा हेतुथी कहेवाय छे के जे वेद्यं ते निर्जयु नथी, जे निर्जयु ते वेडं नथी? [उ०] हे गौतम ! कर्म वेयुं अने नोकर्म निर्जयु ते हेतुथी हे गौतम ! यावत् वेधुनथी. [प्र०] हे भगवन् ! नारकोए जे वेद्युते निर्ज? [उ.] पूर्व कह्या प्रमाणे नारको पण जाणवा, यावत्
वैमानिको पण जाणवा. [प्र.] हे भगवन् ! शुं खरेखर जेने वेदे छे तेने निर्जरे छे, अने जेने निर्जरे छे तेने वेदे छे ? [उ०] हे | गौतम ! ए अर्थ योग्य नथी. [प्र०] हे भगवन् ! एम शा हेतुथी कहेवाय छे के यावत् जेने वेदे छे तेने निर्जरतो नथी, जेने निर्जरे
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