Book Title: Bhagvati Sutram Part 02
Author(s): Sudharmaswami, 
Publisher: Hiralal Hansraj

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Page 189
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्या प्रज्ञप्तिः ।।५११।। www.kobatirth.org सेवं भंते ! | (सूत्रं २७३ ) | सत्तमस्स सयस्स बिडओ उद्देसो संमत्तो ॥ ७२ ॥ [प्र० ] हे भगवन् ! शुं जीनो शाश्वत के अशाश्वत छे ? [उ०] हे गौतम! जीवो कथंचित् शाश्वत छे अने कथंचित् अशावत छे. [प्र० ] हे भगवन् ! ए प्रमाणे शा हेतुथी कहो छो के कथंचित् शाश्वत छे अने कथंचित् अशाश्वत छे ? [अ०] द्रव्यनी अपेक्षाए जीवो शाश्वत छे, अने पर्यायनी अपेक्षाए जीवो अशाश्वत है; ते हेतुथी एम कहुं छु के यावत् कथंचित् अशाश्वत छे. [प्र० ] हे भगवन् ! शुं नारको शाश्वत छे के अशाश्वत है ? [उ०] जेम जीवो का तेम नारको पण जाणवा. ए प्रमाणे यावत् वैमानिको पण जाणवा; यावत् कथंचित् शाश्वत अने कथंचित् अशाश्वत छे. हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे, हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे एम कही गौतम यावत् विचरे छे. ।। २७३ Π भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवती सूत्रना सातमा शतकमां बीजा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो. 64 उद्देशक ३. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वणस्सइकाइया णं भते किंकालं सव्वष्पाहारगा वा मन्त्रमहाहारगा वा भवंति ?, गोयमा ! पाउसवरि सारत्तेसु णं एत्थ णं वणस्सइकाइया सव्वमहाहारगा भवति, तदाणंतरं च णं सरए तयाणंतरं हेमंते तदानरं च णं वसंते तदाणंतरं च णं गिम्हे, गिम्हालु णं वणस्सइकाइया सवप्पाहारगा भवंति, जड़ णं भंते! गिम्हासु वणस्सइकाइया सव्वाप्पाहारगा भवंति कम्हा णं भंते! गिम्हासु बहवे वणस्सइकाइया पत्तिया पुष्किया For Private and Personal Use Only ७ शतके उद्देशः ३ ।।५११॥

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